Welcome to @UtkarshClasses Telegram Channel.
✍️ Fastest growing Online Education App ?
?Explore Other Channels: ?
http://link.utkarsh.com/UtkarshClassesTelegram
? Download The App
http://bit.ly/UtkarshApp
? YouTube?
http://bit.ly/UtkarshClasses
Last updated 2 months ago
https://telegram.me/SKResult
☝️
SK Result
इस लिंक से अपने दोस्तों को भी आप जोड़ सकते हो सभी के पास शेयर कर दो इस लिंक को ताकि उनको भी सही जानकारी मिल सके सही समय पर
Last updated 1 week, 1 day ago
प्यारे बच्चो, अब तैयारी करे सभी गवर्नमेंट Exams जैसे SSC CGL,CPO,CHSL,MTS,GD,Delhi पुलिस,यूपी पुलिस,RRB NTPC,Group-D,Teaching Exams- KVS,CTET,DSSSB & बैंकिंग Exams की Careerwill App के साथ बहुत ही कम फ़ीस और इंडिया के सबसे बेहतरीन टीचर्स की टीम के साथ |
Last updated 1 month, 4 weeks ago
नेताजी सुभाषचंद्र बोस की कलम से-
स्वामीजी पूर्ण विकसित पौरुष से संपन्न थे। उनके रग-रग में योद्धापन भरा था। इसीलिए वे शक्ति के उपासक थे और इसी कारण उन्होंने अपने देशवासियों का उत्थान करने हेतु वेदांत की एक नवीन व्यवहारिक व्याख्या दी। "उपनिषद-- शक्ति, शक्ति और शक्ति का उपदेश देते हैं।"यही बात स्वामी जी बारंबार कहते थे। चरित्र-गठन को वे सर्वाधिक महत्व दे गए हैं। वे विश्व के प्रथम ऐसे सर्वोच्च कोटि के योगी थे जिन्होंने ब्रह्म का साक्षात्कार करने के बाद भी स्वदेश तथा मानवता के नैतिक एवं आध्यात्मिक उत्थान के लिए अपना संपूर्ण जीवन अर्पित कर दिया था। यदि मैं भूल नहीं करता
तो आधुनिक भारत उन्हीं की सृष्टि है।
श्रीरामकृष्ण और स्वामी विवेकानंद के प्रति मैं कितना ऋणी हूं यह शब्दों में लिखकर भला मैं कैसे व्यक्त कर सकता हूं। उन्हीं के पुण्य प्रभाव से मेरे जीवन में चेतना का प्रथम प्रादुर्भाव हुआ था। निवेदिता के समान ही मेरा भी विश्वास है कि रामकृष्ण और विवेकानंद एक ही अखंड व्यक्तित्व के दो रूप हैं। आज यदि स्वामीजी जीवित होते, तो निश्चय ही वे मेरे गुरु होते--अर्थात मैंने अवश्य ही उनका गुरु के रूप में वरण कर लिया होता। अस्तु । कहना न होगा कि मैं जब तक जीवित रहूंगा 'रामकृष्ण-विवेकानंद' का अनन्य अनुगत तथा अनुरागी बना रहूंगा।
स्वामीजी का यथार्थ मूल्यांकन करने के लिए उन्हें परमहंस देव के साथ मिलाकर देखना होगा। वर्तमान स्वाधीनता आंदोलन की नींव स्वामीजी की वाणी पर ही आश्रित है। भारतवर्ष को यदि स्वाधीन होना है तो उसमें हिंदुत्व या इस्लाम का प्रभुत्व होने से काम न होगा-- उसे राष्ट्रीयता के आदर्श से अनुप्राणित कर विभिन्न संप्रदायों का सम्मिलित निवास-स्थान बनाना होगा। रामकृष्ण-विवेकानंद का 'धर्म- समन्वय' का संदेश भारतवासियों को संपूर्ण ह्रदय के साथ अपनाना होगा।....
ॐ
सुभाषचंद्र बोस (1897- 1945)
प्रस्तुतिकर्ता Suresh Kumar Chandrakerजी
क्या रात्रि में विवाह अनुचित है?
कुतर्क - वेद मंत्र रात को नहीं पढ़ते हैं।
निराकरण - वेद का स्वाध्याय निषिद्ध है, मंत्र प्रयोग नहीं।
कुतर्क - मुगलों के डर से रात में विवाह शुरू हुआ।
निराकरण - मुगल रात में हमला न करने की कसम खाए थे क्या?
कुतर्क - शिव जी का भी विवाह रात में नहीं हुआ था।
समाधान - शिव जी के विवाह में भी ध्रुव तारा दर्शन के बाद ही सिंदूर दान आदि हुआ जो दिन में संभव नहीं।
निष्कर्ष - दिन में विवाह का निषेध प्राप्त तो नहीं होता है लेकिन ध्रुवदर्शन , अरुंधतीदर्शन और सप्तऋषि तारामंडल दर्शन जैसे कार्य रात्रि में ही संभव होने के कारण रात्रि विवाह ही अधिक उपयुक्त है।
अत्रि स्मृति में ग्रहण, संक्रान्ति विवाह और प्रसव के समय नैमित्तिक दान को रात्रि में भी श्रेष्ठ बताए जाने के क्रम में विवाह की उपस्थिति इसे रात्रिकाल में होना सिद्ध करती है।
E-समिधा
JOIN - @esamidha
आर्यसमाजियों और इस्लामिक मतानुयायियों के मान्य राष्ट्रवाद की धर्मशास्त्रीय समीक्षा ---
आर्यसमाजियों, इस्लामिक मतवादियों और सनातनी हिन्दुओं में अनेक स्थलों पर सैद्धान्तिक मतभेद सर्वविदित है , इसी प्रकार का मतभेद राष्ट्रवाद के सन्दर्भ में भी है ।
एक महाशय (आर्यसमाजी चिन्तक) का कहना था कि भले ही आप पौराणिक सनातनी लोग हम आर्यसमाजियों से अनेक विषयों में मतभेद रखें पर हमारी राष्ट्रभक्ति से असहमत नहीं हो सकते । ऐसे ही आजकल के कुछ नवचिन्तक मानते हैं कि राष्ट्रवादी इस्लामिक मतानुयायियों की राष्ट्रभक्ति सनातनियों के लिये पूर्णतः आदरणीय है इत्यादि, किन्तु यथार्थता तो यही है कि आर्यसमाजियों और तथाकथित मुसलमानों का राष्ट्रवाद वस्तुतः अविचारितरमणीय ही है। वस्तुतः तो सैद्धान्तिक दृष्टि से ये लोग आवासवादी ही हैं , अर्थात् जहॉ इनका आवास है, उसी की ये रक्षा चाहते हैं । उक्त जन्मना आवासवाद के सिद्धान्त पर विचार करें तो यदि यह सउदी अरब में जन्मे होते तो वहॉ अपनी रक्षा के लिये सउदी अरब की ही जयकार करते , जबकि जो वैदिक सनातनी हिन्दू हैं , वे चाहे विश्व के किसी भी देश में जन्म ले लें , अथवा रहने को मजबूर कर दिये जायें, परन्तु वह सर्वप्रथम भारत की रक्षा को ही सर्वोपरि मानते हैं। इसका कारण क्या है ? कारण है मान्य शास्त्रीय सिद्धान्त । वह कैसे , आगे देखें -
जिनके सिद्धान्त में केवल और केवल भारत को ही कर्मभूमि माना गया है , उसके लिये भारत से बाहर क्या गति होगी ❓जो विष्णुपुराण को अपने धर्मग्रन्थ के रूप में प्रमाण मानते हैं , वह भारत के विषय में कर्मभूमि भोगभूमि का सिद्धान्त मानते हैं । अतः वे चाहे विश्व में कहीं भी रहें , उनका कर्मफल पुनर्जन्म का उनका सिद्धान्त और कर्मभूमि भोगभूमि का सिद्धान्त उनको भारत के समकक्ष किसी के नहीं समझने देता । उनके लिये तो भारत ही पहली और अन्तिम गति है । किन्तु कथित राष्ट्रवादी मुसलमानों के मान्य कुरआन शरीफ में यह सैद्धान्तिक स्थिति है क्या ❓
इसी प्रकार आर्यसमाजियों के मान्य सिद्धान्त में भी जो तिब्बत की धरती से प्रकट होने वाले आर्यसमाजियों के लिये मनु के आर्यावर्त्त की मान्यता है, उसके मूल में कर्मभूमि और भोगभूमि का कोई पार्थक्य न होने से अमेरिका की धरती और भारत की धरती में कोई अन्तर नहीं है । गंगा यमुना सरस्वती आदि का यह वेद में वर्णन ही नहीं मानते , वह केवल एक जलस्रोतमात्र इनके सिद्धान्त में है । यह भारत में इसीलिये रहते हैं क्योंकि इनके पूर्वज यहॉ रहते आये हैं , परन्तु इनके वे पूर्वज यहॉ भारत में क्यों रहे ? किस कारण से भारत में रहे ? इस पर विचार अपेक्षित है , क्योंकि मूल में यदि भौतिक सुविधा जैसा हेतु होगा , तो वह भौतिक सुविधा जिस देश में इनको मिलना सम्भव होगा , वही सैद्धान्तिक धरातल पर इनका नवीन राष्ट्र सिद्ध होने लगेगा । वस्तुतः तो सत्यार्थप्रकाशादि के आधार पर जैसा आर्यसमाजियों का राष्ट्रवाद है, आर्यसमाजी अगर अमेरिका में रहेंगे तो एक पीढी के बाद ही उसको भी अपना राष्ट्र मानने लगेंगे क्योंकि / पूर्वजों की आवासभूमि/ के इनके सिद्धान्तानुरूप अपने पूर्वजों को वहॉ भी रहते हुए ये पा लिये । जिस संहिताभागमात्र को यह अपने लिये सर्वोच्चप्रमाणत्वेन वेद मानते हैं, उसमें इतिहास का लवलेश भी इनके मत में कहीं नहीं है । इस प्रकार सैद्धान्तिक धरातल पर इनका राष्ट्रवादी भाव व्यभिचरित सिद्ध हो जाता है ।
आज आवश्यकता यह है कि यह लोग 'सनातनी हिन्दू राष्ट्रवाद' को अपनाऐं, जिससे सैद्धान्तिक धरातल पर यह सनातनी हिन्दुओं की ही भांति शुद्ध , पवित्र राष्ट्रवादी सिद्ध हो सकें । ✅
सन्मार्ग
?????
सत्यार्थ प्रकाश में दयानन्द सरस्वती कहते है कि मूर्ति पूजा करने वाले देश का नाश करते है और मूर्तिपूजा करने वाली की आत्मा भी जड़ बुद्धि हो जाती है।
- ललितादित्य मुक्तापीड
- राजा भोज
- राजा विक्रमादित्य
- पृथ्वीराज चौहान
- राजा कृष्णदेव राय
- महाराणा प्रताप
- समर्थ गुरु रामदास जी
- छत्रपति शिवाजी महाराज
ये सभी मूर्तिपूजक थे
क्या इनकीं आत्मा जड़ हो गयी थी?
क्या इन्होंने देश का नाश किया था?
क्या आपके माता पिता इस देश का नाश कर रहे है?
सोचिए और ऐसी संस्थाओं से सावधान हो जाइए।
JOIN - @ESAMIDHA
वर्णव्यवस्था की डिबेट में जब हर तरफ से आर्य समाजी घिर जाते है या निउत्तर हो जाते है तो उन को उन्ही पुराणों का सहारा लेना पड़ता है जिनको दिन भर बैठ कर गरियाते रहते है।
जन्मना जायते शूद्र: जो स्कंद पुराण का श्लोक है वो कुछ समय के लिए इनके लिए ऋषि वाक्य हो जाता है।
इन दोगले लोगो से अछूत की बीमारी की तरह दूर रहे।
जय श्री राम
कुछ दिन पहले हमें 2 गाएं मिली जिनके चोट लगी हुई थी। हमने उनकी चोट का यथासंभव उपचार किया।
इस गौसेवा में सहयोग करने वाले सभी बंधुओं को बहुत- बहुत धन्यवाद।
https://youtu.be/Iw3HWU3k9Ow?si=B5WdXhj1X5Px_Vup
आप मुझे नीचे दिए गए upi id पर सहायता कर सकते है।
satyam9785@cnrb
तुम ,
तुम्हारी सृष्टि ,
तुम्हारा नियम ,
बिधि तुम्हारी और
तुम्हारी इच्छा
मैं
भक्त तुम्हारा
तुम्हारी सृष्टि में ,
तुम्हारे नियम से बंधा हुआ ..
तुम्हारी इच्छा से जीवन मेरा ..
अर्पण, समर्पण , भक्ति , भाव
सब कुछ तुम्हारा...
सुख भी और दुःख भी ..
कर्म मेरा पीड़ा मेरी
सहानुभूति तुम्हारा ...
तुम ईश्वर
मैं सत्ता-हीन
ये जन्म-जन्मांतर का बन्धन हमारा ...
तन , मन , प्राण मेरा
और चरण तुम्हारा ...
तुम मेरे सर्वस्व
मैं दास तुम्हारा ...
?
केवल वर्ण और जाति ही क्यों मिटानी है आपको ? परिवार भी मिटा दीजिये। माता, पिता, सास, बहू, बेटा, बहन, आदि में भी कितने झगड़े चल रहे हैं तो एकता आयेगी कैसे ? जाति से अधिक मुकदमे तो परिवार के नाम पर चल रहे न तो परिवार को मिटाकर हिन्दू एकता लाओ, केवल नर मादा रहने दो और उसके बाद उसका भेद भी मिटा दो। काल्पनिक पार्टियों के नाम पर बंटे रहना स्वीकार है, पारिवारिक रिश्तों में बंटे रहना स्वीकार है लेकिन जिस शास्त्रीय वर्णाश्रम विधान से धर्म व्यवस्था पुष्ट है, उसमें मानसिक म्लेच्छ बना हिन्दू नहीं रहना चाहता है।
- निग्रहचार्य श्रीभागवतानंद गुरु
जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद्द्विज उच्यते ॥
(स्कन्दपुराण)
यहाँ जन्म से शूद्र इसीलिए कहा क्योंकि असंस्कृत व्यक्ति की शूद्रवत् संज्ञा है। जैसे शूद्र को वेदाध्ययन का अधिकार नहीं, वैसे ही अनुपवीती ब्राह्मण को भी नहीं।
इसीलिए उसी स्कन्दपुराण में फिर कहा :-
ब्राह्मणो हि महद्भूतं जन्मना सह जायते ॥
ब्राह्मण जन्म से ही महान् है।
ब्रह्म को जानने वाला ब्राह्मण है, यह बात सत्य है लेकिन उससे पहले ब्राह्मण माता पिता और गुरु की भी आवश्यकता है। तब वह ब्रह्म को जान पाता है। यहां कॉलेज का सिलेबस खत्म कर नहीं पाते, चले हैं ब्रह्मज्ञान भांजने।
Welcome to @UtkarshClasses Telegram Channel.
✍️ Fastest growing Online Education App ?
?Explore Other Channels: ?
http://link.utkarsh.com/UtkarshClassesTelegram
? Download The App
http://bit.ly/UtkarshApp
? YouTube?
http://bit.ly/UtkarshClasses
Last updated 2 months ago
https://telegram.me/SKResult
☝️
SK Result
इस लिंक से अपने दोस्तों को भी आप जोड़ सकते हो सभी के पास शेयर कर दो इस लिंक को ताकि उनको भी सही जानकारी मिल सके सही समय पर
Last updated 1 week, 1 day ago
प्यारे बच्चो, अब तैयारी करे सभी गवर्नमेंट Exams जैसे SSC CGL,CPO,CHSL,MTS,GD,Delhi पुलिस,यूपी पुलिस,RRB NTPC,Group-D,Teaching Exams- KVS,CTET,DSSSB & बैंकिंग Exams की Careerwill App के साथ बहुत ही कम फ़ीस और इंडिया के सबसे बेहतरीन टीचर्स की टीम के साथ |
Last updated 1 month, 4 weeks ago