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Jai Shree Krishna! Mitron. Shubh Navratri Sabko 🚩🙏❤️
अपने इष्टदेव के नाम का जप किया जा सकता है। स्त्री-पुरुष दोनों ही समान रूप से नाम जप कर सकते हैं।
इष्ट अनुसार नाम मंत्र-
शिव जी- 'शिव-शिव' या 'शिव शङ्कर प्रलयंकर' या 'श्रीरुद्र रुद्र रुद्र' का जप।
विष्णु जी- 'नारायण-नारायण' नाम जप या 'अच्युत अनन्त गोविंद' जप।
राम जी- 'श्रीरामजयरामजयजयराम' या 'सीताराम' जप या 'राम-राम'।
कृष्ण जी- 'अच्युत अनन्त गोविंद' जप या 'कृष्ण-कृष्ण' जप या 'गोविंद-गोविंद' जप या 'गोविंद दामोदर माधवेति' या 'भज गोविंदम्' आदि स्तोत्र।
दुर्गा जी- 'मृणानी रुद्राणी शिव शिव भवानी' जप या 'दुर्गा-दुर्गा' जप या 'भज ललिते ललिते...' कीर्तन ब्रह्मलीन द्वारकाशङ्कराचार्य जी विरचित या रामचरितमानस से-
'जय जय गिरिबरराज किसोरी।
जय महेस मुख चंद चकोरी।।
जय गज बदन षड़ानन माता।
जगत जननि दामिनि दुति गाता।।
नहिं तव आदि मध्य अवसाना।
अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।।
भव भव बिभव पराभव कारिनि।
बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।।'
गणेश जी- 'गाइये गणपति जगवंदन।
शंकर सुवन भवानी नंदन॥
सिद्धि सदन गजवदन विनायक।
कृपा सिंधु सुंदर सब लायक॥
मोदक प्रिय मुद मंगल दाता।
विद्या बारिधि बुद्धि विधाता॥
मांगत तुलसीदास कर जोरे।
बसहिं रामसिय मानस मोरे॥'
अमुक-अमुक देवी-देवताओं के लिए शास्त्रों में जिन-जिन मालाओं का वर्णन किया गया है, उनका प्रयोग उनके नामजप हेतु भी किया जा सकता है। अन्यथा रुद्राक्ष अथवा स्फटिक की माला पर। किंतु रुद्राक्ष की माला पर शक्तिमंत्र का जप रात्रि में नहीं करना चाहिए।
अयोध्यावासियों की निन्दा करना धर्मानुसार निन्दनीय है -----
राजनीति के चक्कर में अयोध्यावासियों से बुरा भला कहना रामद्रोहतुल्य है , क्योंकि धर्मानुसार अयोध्यावासी भगवान् श्रीराम को अति प्रिय हैं । अति प्रिय मोहि इहॉ के बासी । ✅
राजनीतिक कारण से अयोध्यावासियों की निन्दा करने वालों से पूछना चाहिये कि यदि अयोध्यावासी निन्दनीय प्रजा ही हैं तो निन्दनीय लोगों (अयोध्यावासियों) से चयनित हो कर आना निन्दनीय है कि नहीं ? जब अयोध्यावासियों के पास जाकर उनका नेता बनने की याचना करना निन्दनीय नहीं लगता तो , नेता न बन पाने पर उनकी निन्दा कैसे संगत है ? धर्मानुसार जैसे प्रजा का पाप उसी के राजा को लगता है , वैसे ही निन्दनीय प्रजा का नेता होने की कामना से चुनाव में खड़ा होना क्या व्यक्ति को महानिन्दनीय बनाता है कि नहीं ? अतः अयोध्यावासियों की निन्दा करना पूरी तरह से निन्दनीय है ।
ये कहना कि अयोध्यावासियों ने सीतानिर्वसन करवाया , ये भी मूर्खतापूर्ण प्रलाप है , क्योंकि सीतानिर्वसन में जो प्रश्नचिन्ह हेतु बनकर उभरे थे , वे नैसर्गिक थे , अतः केवल अयोध्या की प्रजा तक उनकी सीमा न थी, वरन् समस्त विश्व उसकी चपेट में आये बिना न रह पाता। यह तो अयोध्यापुरी का मंगल प्रताप ही है कि वहॉ भगवान् श्रीराम से समय रहते एक अत्यावश्यक कार्य हो गया । कदाचित् उस समय सीतानिर्वसन न होता तो भविष्य राम पर कलंक लगाता और नीति, प्रीति, परमार्थ और स्वार्थ - चारों ही श्रीराम के माध्यम से न सध पाते । ये अयोध्यावासियों का ही मंगल प्रताप था कि श्रीराम आज 'निष्कलंक मर्यादापुरुषोत्तम' के रूप में घर घर में पूजित हैं । रामराज्यकाल में अयोध्यावासियों का पवित्र धार्मिक जीवन किस प्रकार समस्त विश्व की आदर्श प्रजा बना हुआ था , यह उनको पढकर अपने जीवन में भी धर्माचरण करना सीखना चाहिए, जो उनके आलोचक बने प्रलाप करते घूमते हैं । ✅
#सन्मार्ग
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