Motivational stories and kahaniya

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सिंगल जोड़ी आफ्टर पास मात्र 111 कोन कोन देगा ईमानदार से बातो

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वाला बटन दबाकर देखते हैं कोन कोन ईमानदार हैं

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6 months, 4 weeks ago

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#motvational_story

सफल जीवन

एक बार एक शिष्य ने अपने गुरू से पूछा- गुरुदेव ये सफल जीवन क्या होता है?

गुरु शिष्य को पतंग उड़ाने ले गए, शिष्य गुरु को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था।

थोड़ी देर बाद शिष्य बोला- गुरुदेव ये धागे की वजह से पतंग अपनी आजादी से और ऊपर की ओर नहीं जा पा रही है। क्या हम इसे तोड़ दे? ये और ऊपर चली जायेगी।

गुरु ने धागा तोड़ दिया, पतंग थोड़ा सा ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आई और अनजान जगह पर जा कर गिर गई।

तब गुरु ने शिष्य को जीवन का दर्शन समझाया बेटे जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर है हमें अकसर लगता है कि कुछ चीजें जिनसे हम बंधे हैं, वह हमें और ऊपर जाने से रोक रही है, जैसे घर, परिवार, अनुशासन, माता-पिता, गुरु और समाज; हम उनसे आजाद होना चाहते हैं।

वास्तव में यही वो धागा होते हैं, जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं। इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा, जो बिन धागे की पतंग का हुआ..!!

शिक्षा:-
जीवन में यदि तुम ऊंचाई पर बने रहना चाहते हो तो कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना, धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली ऊंचाई को ही सफल जीवन कहते हैैं..!!

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6 months, 4 weeks ago

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#motvational_story

परिश्रम रूपी धन

सुन्दरपुर गांव में एक किसान रहता था। उसके चार बेटे थे। वे सभी आलसी और निक्कमे थे। जब किसान बुढ़ा हुआ तो उसे बेटों की चिंता सताने लगी।

एक बार किसान बहुत बीमार पड़ा। मृत्यु निकट देखकर उसने चार बेटों को अपने पास बुलाया। उसने उस चारों को कहा, “मैंने बहुत-सा धन अपने खेत में गाड रखा है। तुम लोग उसे निकाल लेना।” इतना कहते-कहते किसान के प्राण निकल गए।

पिता का क्रिया-क्रम करने के बाद चारों भाइयों ने खेत की खुदाई शुरू कर दी। उन्होंने खेत का चप्पा-चप्पा खोद डाला, पर उन्हें कही धन नहीं मिला। उन्होंने पिता को खूब कोसा। वर्षा ऋतु आने वाली थी। किसान के बेटों ने उस खेत में धान के बीज बो दिए। वर्षा का पानी पाकर पौधे खूब बढ़े। उन पर बड़ी-बड़ी बालें लगी। उस साल खेत में धान की बहुत अच्छी फसल हुई।

चारों भाई बहुत खुश हुए। अब पिता की बात का सही अर्थ उनकी समझ में आ गया। उन्होंने खेत की खुदाई करने में जो परिश्रम किया था, उसी से उन्हें अच्छी फसल के रूप में बहुत धन मिला था।

इस प्रकार श्रम का महत्व समझने पर चारों भाई मन लगाकर खेती करने लगे।

शिक्षा:-
परिश्रम ही सच्चा धन है।
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7 months ago

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#motvational_story
कमियां

कबूतर के एक जोड़े ने अपने लिए घोंसला बनाया परंतु जब कबूतर जोड़ें उस घोंसले में रहते हैं तो अजीब बदबू आती रहती थी। उन्होंने उस घोंसले को छोड़ कर दूसरी जगह एक नया घोंसला बनाया, मगर स्थिति वैसी ही थी; बदबू ने यहां भी पीछा नहीं छोड़ा!

परेशान होकर उन्होंने वह मोहल्ला ही छोड़ दिया और नए मोहल्ले में घोंसला बनाया। घोंसले के लिए साफ सुथरे तिनके जोड़ें, मगर यह क्या! इस घोंसले में भी वहीं, उसी तरह की बदबू आती रहती थी।

थक हार कर उन्होंने अपने एक बुजुर्ग चतुर कबूतर से सलाह लेने की ठानी और उनके पास जाकर तमाम वाकया बताया।

चतुर कबूतर उनके घोंसले में गया, आसपास घुमा फिरा और फिर बोला, घोंसला बदलने से यह बदबू नहीं जाएगी। बदबू घोंसले में नहीं, तुम्हारे अपने शरीर से आ रही है। खुले में तुम्हें अपनी बदबू महसूस नहीं होती, मगर घोंसले में घुसते ही तुम्हें यह महसूस होती है और तुम समझते हो कि बदबू घोंसले से आ रही है, अब जरा अपने आप को साफ करो।

शिक्षा:-
पूरी दुनिया से खामियां निकालने और बदबू ढूंढने के बजाय हम अपने भीतर की खामियों (कमजोरियों) और अपवित्रता रूपी (विकारों) बदबू को हटाएं तो दुनिया सचमुच खूबसूरत और खुशबूदार हो जायेगी..!!

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7 months ago

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!! संगति, परिवेश और भाव !!

एक राजा अपनी प्रजा का भरपूर ख्याल रखता था. राज्य में अचानक चोरी की शिकायतें बहुत आने लगीं. कोशिश करने से भी चोर पकड़ा नहीं गया.

हारकर राजा ने ढींढोरा पिटवा दिया कि जो चोरी करते पकडा जाएगा उसे मृत्युदंड दिया जाएगा. सभी स्थानों पर सैनिक तैनात कर दिए गए. घोषणा के बाद तीन-चार दिनों तक चोरी की कोई शिकायत नही आई.

उस राज्य में एक चोर था जिसे चोरी के सिवा कोई काम आता ही नहीं था. उसने सोचा मेरा तो काम ही चोरी करना है. मैं अगर ऐसे डरता रहा तो भूखा मर जाउंगा. चोरी करते पकडा गया तो भी मरुंगा, भूखे मरने से बेहतर है चोरी की जाए.

वह उस रात को एक घर में चोरी करने घुसा. घर के लोग जाग गए. शोर मचाने लगे तो चोर भागा. पहरे पर तैनात सैनिकों ने उसका पीछा किया. चोर जान बचाने के लिए नगर के बाहर भागा.

उसने मुडके देखा तो पाया कि कई सैनिक उसका पीछा कर रहे हैं. उन सबको चमका देकर भाग पाना संभव नहीं होगा. भागने से तो जान नहीं बचने वाली, युक्ति सोचनी होगी.

चोर नगर से बाहर एक तालाब किनारे पहुंचा. सारे कपडे उतारकर तालाब मे फेंक दिया और अंधेरे का फायदा उठाकर एक बरगद के पेड के नीचे पहुंचा.

बरगद पर बगुलों का वास था. बरगद की जड़ों के पास बगुलों की बीट पड़ी थी. चोर ने बीट उठाकर उसका तिलक लगा लिया ओर आंख मूंदकर ऐसे स्वांग करने बैठा जैसे साधना में लीन हो.

खोजते-खोजते थोडी देर मे सैनिक भी वहां पहुंच गए पर उनको चोर कहीं नजर नहीं आ रहा था. खोजते खोजते उजाला हो रहा था ओर उनकी नजर बाबा बने चोर पर पडी.

सैनिकों ने पूछा- बाबा इधर किसी को आते देखा है. पर ढोंगी बाबा तो समाधि लगाए बैठा था. वह जानता था कि बोलूंगा तो पकडा जाउंगा सो मौनी बाबा बन गया और समाधि का स्वांग करता रहा.

सैनिकों को कुछ शंका तो हुई पर क्या करें. कही सही में कोई संत निकला तो ? आखिरकार उन्होंने छुपकर उसपर नजर रखना जारी रखा. यह बात चोर भांप गया. जान बचाने के लिए वह भी चुपचाप बैठा रहा.

एक दिन, दो दिन, तीन दिन बीत गए बाबा बैठा रहा. नगर में चर्चा शुरू हो गई की कोई सिद्ध संत पता नही कितने समय से बिना खाए-पीए समाधि लगाए बैठै हैं. सैनिकों को तो उनके अचानक दर्शऩ हुए हैं.

नगर से लोग उस बाबा के दर्शन को पहुंचने लगे. भक्तों की अच्छी खासी भीड़ जमा होने लगी. राजा तक यह बात पहुंच गई. राजा स्वयं दर्शन करने पहुंचे. राजा ने विनती की आप नगर मे पधारें और हमें सेवा का सौभाग्य दें.

चोर ने सोचा बचने का यही मौका है. वह राजकीय अतिथि बनने को तैयार हो गया. सब लोग जयघोष करते हुए नगर में लेजा कर उसकी सेवा सत्कार करने लगे.

लोगों का प्रेम और श्रद्धा भाव देखकर ढोंगी का मन परिवर्तित हुआ. उसे आभास हुआ कि यदि नकली में इतना मान-संम्मान है तो सही में संत होने पर कितना सम्मान होगा. उसका मन पूरी तरह परिवर्तित हो गया और चोरी त्यागकर संन्यासी हो गया.

शिक्षा:-
संगति, परिवेश और भाव इंसान में अभूतपूर्व बदलाव ला सकता है. रत्नाकर डाकू को गुरू मिल गए तो प्रेरणा मिली और वह आदिकवि हो गए. असंत भी संत बन सकता है, यदि उसे राह दिखाने वाला मिल जाए.

अपनी संगति को शुद्ध रखिए, विकारों का स्वतः पलायन आरंभ हो जाएगा.

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1 year, 2 months ago

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#motvational_story
आनन्द की खोज

एक नगर का राजा, जिसे ईश्वर ने सब कुछ दिया, एक समृद्ध राज्य, सुशील और गुणवती पत्नी, संस्कारी सन्तान सब कुछ था उसके पास, पर फिर भी दुःखी का दुःखी रहता।

एक बार वो घुमते घुमते एक छोटे से गाँव में पहुँचा जहाँ एक कुम्हार भगवान भोले बाबा के मन्दिर के बाहर मटकीया बेच रहा था और कुछ मटकीयों में पानी भर रखा था और वही पर लेटे लेटे हरिभजन गा रहा था।

राजा वहाँ आया और भगवान भोले बाबा के दर्शन किये और कुम्हार के पास जाकर बैठा तो कुम्हार बैठा हुआ और उसने बड़े आदर से राजा को पानी पिलाया। राजा कुम्हार से कुछ प्रभावित हुआ और राजा ने सोचा कि ये इतनी सी मटकीयों को बेच कर क्या कमाता होगा?

तो राजा ने पूछा क्यों भाई प्रजापति जी मेरे साथ नगर चलोगे।

प्रजापति ने कहा- नगर चलकर क्या करूँगा राजा जी?

राजा- वहाँ चलना और वहाँ खुब मटकीया बनाना।

प्रजापति- फिर उन मटकीयों का क्या करूँगा?

राजा- अरे क्या करेगा? उन्हें बेचना खुब पैसा आयेगा तुम्हारे पास।

प्रजापति- फिर क्या करूँगा उस पैसे का?

राजा- अरे पैसे का क्या करेगा? अरे पैसा ही सब कुछ है।

प्रजापति- अच्छा राजन, अब आप मुझे ये बताईये कि उस पैसे से क्या करूँगा?

राजा- अरे फिर आराम से भगवान का भजन करना और फिर तुम आनन्द में रहना।

प्रजापति- "क्षमा करना हे राजन! पर आप मुझे ये बताईये कि अभी मैं क्या कर रहा हूं और हाँ पुरी ईमानदारी से बताना।

काफी सोच विचार किया राजा ने और मानो इस सवाल ने राजा को झकझोर दिया।

राजा- हाँ प्रजापति जी आप इस समय आराम से भगवान का भजन कर रहे हो और जहाँ तक मुझे दिख रहा है आप पुरे आनन्द में हो!

प्रजापति- हाँ राजन यही तो मैं आपसे कह रहा हूं कि आनन्द पैसे से प्राप्त नहीं किया जा सकता है!

राजा- हे प्रजापति जी कृपया कर के आप मुझे ये बताने कि कृपा करें की आनन्द की प्राप्ति कैसे होगी?

प्रजापति- बिल्कुल सावधान होकर सुनना और उस पर बहुत गहरा मंथन करना राजन! हाथों को उल्टा कर लिजिये!

राजा- वो कैसे?

प्रजापति- हे राजन! मांगो मत, देना सीखो और यदि आपने देना सीख लिया तो समझ लेना आपने आनन्द की राह पर कदम रख लिया! स्वार्थ को त्यागो परमार्थ को चुनो! हे राजन अधिकांशतः लोगों के दुःख का सबसे बड़ा कारण यही है कि जो कुछ भी उसके पास है वो उसमें सुखी नहीं है और बस जो नहीं है उसे पाने के चक्कर में दुःखी है! अरे भाई जो है उसमें खुश रहना सीख लो दुःख अपने आप चले जायेंगे और जो नहीं है क्यों उसके चक्कर में दुःखी रहते हो!

शिक्षा:-

आत्मसंतोष से बड़ा कोई सुख नहीं और जिसके पास सन्तोष रूपी धन है वही सबसे बड़ा सुखी है और वही आनन्द में है और सही मायने में वही राजा है!
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1 year, 3 months ago

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#motvational_story

ज्ञान की पहचान

किसी जंगल में एक संत महात्मा रहते थे। सन्यासियों वाली वेशभूषा थी और बातों में सदाचार का भाव, चेहरे पर इतना तेज था कि कोई भी इंसान उनसे प्रभावित हुए नहीं रह सकता था।

एक बार जंगल में शहर का एक व्यक्ति आया और वो जब महात्मा जी की झोपड़ी से होकर गुजरा तो देखा बहुत से लोग महात्मा जी के दर्शन करने आये हुए थे। वो महात्मा जी के पास गया और बोला कि आप अमीर भी नहीं हैं, आपने महंगे कपडे भी नहीं पहने हैं, आपको देखकर मैं बिल्कुल प्रभावित नहीं हुआ फिर ये इतने सारे लोग आपके दर्शन करने क्यों आते हैं ?

महात्मा जी ने उस व्यक्ति को अपनी एक अंगूठी उतार के दी और कहा कि आप इसे बाजार में बेच कर आएं और इसके बदले एक सोने की माला लेकर आना।

अब वो व्यक्ति बाजार गया और सब की दुकान पर जा कर उस अंगूठी के बदले सोने की माला मांगने लगा। लेकिन सोने की माला तो क्या उस अंगूठी के बदले कोई पीतल का एक टुकड़ा भी देने को तैयार नहीं था।

थक हार के व्यक्ति वापस महात्मा जी के पास पहुंचा और बोला कि इस अंगूठी की तो कोई कीमत ही नहीं है।

महात्मा जी मुस्कुराये और बोले कि अब इस अंगूठी को सुनार गली में जौहरी की दुकान पर ले जाओ। वह व्यक्ति जब सुनार की दुकान पर गया तो सुनार ने एक माला नहीं बल्कि अंगूठी के बदले पांच माला देने को कहा।

वह व्यक्ति बड़ा हैरान हुआ कि इस मामूली सी अंगूठी के बदले कोई पीतल की माला देने को तैयार नहीं हुआ, लेकिन ये सुनार कैसे 5 सोने की माला दे रहा है!

व्यक्ति वापस महात्मा जी के पास गया और उनको सारी बातें बतायीं।

अब महात्मा जी बोले कि चीजें जैसी ऊपर से दिखती हैं, अंदर से वैसी नहीं होती। ये कोई मामूली अंगूठी नहीं है बल्कि ये एक हीरे की अंगूठी है जिसकी पहचान केवल सुनार ही कर सकता था। इसलिए वह 5 माला देने को तैयार हो गया। ठीक वैसे ही मेरी वेशभूषा को देखकर तुम मुझसे प्रभावित नहीं हुए, लेकिन ज्ञान का प्रकाश लोगों को मेरी ओर खींच लाता है। व्यक्ति महात्मा जी की बातें सुनकर बड़ा शर्मिंदा हुआ।

शिक्षा:-
कपड़ों से व्यक्ति की पहचान नहीं होती बल्कि आचरण और ज्ञान से व्यक्ति की पहचान होती है..!!

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1 year, 3 months ago

#motvational_story

*सेहत का रहस्य *

बहुत समय पहले की बात है, किसी गाँव में शंकर नाम का एक वृद्ध व्यक्ति रहता था। उसकी उम्र अस्सी साल से भी ऊपर थी पर वो चालीस साल के व्यक्ति से भी स्वस्थ लगता था। लोग बार-बार उससे उसकी सेहत का रहस्य जानना चाहते पर वो कभी कुछ नहीं बोलता था। एक दिन राजा को भी उसके बारे में पता चला और वो भी उसकी सेहत का रहस्य जानने के लिए उत्सुक हो गए। राजा ने अपने गुप्तचरों से शंकर पर नज़र रखने को कहा। गुप्तचर भेष बदल कर उस पर नज़र रखने लगे।

अगले दिन उन्होंने देखा कि शंकर भोर में उठ कर कहीं जा रहा है, वे भी उसके पीछे लग गए। शंकर तेजी से चलता चला जा रहा था, मीलों चलने के बाद वो एक पहाड़ी पर चढ़ने लगा और अचानक ही गुप्तचरों की नज़रों से गायब हो गया। गुप्तचर वहीं रुक उसका इंतज़ार करने लगे। कुछ देर बाद वो लौटा, उसने मुट्ठी में कुछ छोटे-छोटे फल पकड़ रखे थे और उन्हें खाता हुआ चला जा रहा था। गुप्तचरों ने अंदाज़ा लगाया कि हो न हो, शंकर इन्हीं रहस्यमयी फलों को खाकर इतना स्वस्थ है।

अगले दिन दरबार में उन्होंने राजा को सारा किस्सा कह सुनाया। राजा ने उस पहाड़ी पर जाकर उन फलों का पता लगाने का आदेश दिया, पर बहुत खोजबीन करने के बाद भी कोई ऐसा असाधारण फल वहां नहीं दिखा। अंततः थक-हार कर राजा शंकर को दरबार में हाज़िर करने का हुक्म दिया। राजा – शंकर, इस उम्र में भी तुम्हारी इतनी अच्छी सेहत देख कर हम प्रसन्न हैं; बताओ, तुम्हारी सेहत का रहस्य क्या है ?

शंकर कुछ देर सोचता रहा और फिर बोला, “महाराज, मैं रोज पहाड़ी पर जाकर एक रहस्यमयी फल खाता हूँ, वही मेरी सेहत का रहस्य है।” ठीक है चलो हमें भी वहां ले चलो और दिखाओ वो कौन-सा फल है। सभी लोग पहाड़ी की ओर चल दिए, वहां पहुँच कर शंकर उन्हें एक बेर के पेड़ के पास ले गया और उसके फलों को दिखाते हुए बोला, हुजूर, यही वो फल है जिसे मैं रोज खाता हूँ।

राजा क्रोधित होते हुए बोले, “तुम हमें मूर्ख समझते हो, यह फल हर रोज हज़ारों लोग खाते हैं, पर सभी तुम्हारी तरह सेहतमंद क्यों नहीं हैं ?” शंकर विनम्रता से बोला, “महाराज, हर रोज़ हजारों लोग जो फल खाते हैं वो बेर का फल होता है, पर मैं जो फल खाता हूँ वो सिर्फ बेर का फल नहीं होता... वो मेरी मेहनत का फल होता है। इसे खाने के लिए मैं रोज सुबह 10 मील पैदल चलता हूँ जिससे मेरे शरीर की अच्छी वर्जिश हो जाती है और सुबह की स्वच्छ हवा मेरे लिए जड़ी-बूटियों का काम करती है। बस यही मेरी सेहत का रहस्य है।

राजा शंकर की बात समझ चुके थे। उन्होंने शंकर को स्वर्ण मुद्राएं देते हुए सम्मानित किया और अपनी प्रजा को भी शारीरिक श्रम करने की नसीहत दी।

शिक्षा:-

मित्रों, आज टेक्नोलॉजी ने हमारी ज़िन्दगी बिलकुल आसान बना दी है। पहले हमें छोटे-बड़े सभी कामों के लिए घर से निकलना ही पड़ता था, पर आज हम Internet के माध्यम से घर बैठे-बैठे ही सारे काम कर लेते हैं। ऐसे में जो थोड़ा बहुत Physical Activity के मौके होते थे वो भी खत्म होते जा रहे हैं और इसका असर हमारी सेहत पर भी साफ़ देखा जा सकता है। WHO के मुताबिक, आज दुनिया में 20 साल से ऊपर के 35% लोग Overweight हैं और 11% Obese हैं। ऐसे में ज़रूरी हो जाता है कि हम अपनी सेहत का ध्यान रखें और रोज़-मर्रा के जीवन में शारीरिक श्रम को महत्त्व दें।।
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1 year, 9 months ago


#motvational_story

निर्दोष को सजा

बहुत समय पहले हरिशंकर नाम का एक राजा था। उसके तीन पुत्र थे और अपने उन तीनों पुत्रों में से वह किसी एक पुत्र को राजगद्दी सौंपना चाहता था। पर किसे? राजा ने एक तरकीब निकाली और उसने तीनो पुत्रों को बुलाकर कहा– अगर तुम्हारे सामने कोई अपराधी खड़ा हो तो तुम उसे क्या सजा दोगे?

पहले राजकुमार ने कहा कि अपराधी को मौत की सजा दी जाए तो दूसरे ने कहा कि अपराधी को काल कोठरी में बंद कर दिया जाये। अब तीसरे राजकुमार की बारी थी। उसने कहा कि पिताजी सबसे पहले यह देख लिया जाये कि उसने गलती की भी है या नहीं।

इसके बाद उस राजकुमार ने एक कहानी सुनाई– किसी राज्य में राजा हुआ करता था, उसके पास एक सुन्दर सा तोता था। वह तोता बड़ा बुद्धिमान था, उसकी मीठी वाणी और बुद्धिमत्ता की वजह से राजा उससे बहुत खुश रहता था। एक दिन की बात है कि तोते ने राजा से कहा कि मैं अपने माता-पिता के पास जाना चाहता हूँ। वह जाने के लिए राजा से विनती करने लगा।

तब राजा ने उससे कहा कि ठीक है पर तुम्हें पांच दिनों में वापस आना होगा। वह तोता जंगल की ओर उड़ चला, अपने माता- पिता से जंगल में मिला और खूब खुश हुआ। ठीक पांच दिनों बाद जब वह वापस राजा के पास जा रहा था तब उसने एक सुन्दर सा उपहार राजा के लिए ले जाने का सोचा।

वह राजा के लिए अमृत फल ले जाना चाहता था। जब वह अमृत फल के लिए पर्वत पर पहुंचा तब तक रात हो चुकी थी। उसने फल को तोड़ा और रात वहीं गुजारने का सोचा। वह सो रहा था कि तभी एक सांप आया और उस फल को खाना शुरू कर दिया। सांप के जहर से वह फल भी विषाक्त हो चुका था।

जब सुबह हुई तब तोता उड़कर राजा के पास पहुँच गया और कहा– राजन मैं आपके लिए अमृत फल लेकर आया हूँ। इस फल को खाने के बाद आप हमेशा के लिए जवान और अमर हो जायेंगे। तभी मंत्री ने कहा कि महाराज पहले देख लीजिए कि फल सही भी है कि नहीं ? राजा ने बात मान ली और फल में से एक टुकड़ा कुत्ते को खिलाया।

कुत्ता तड़प-तड़प कर मर गया। राजा बहुत क्रोधित हुआ और अपनी तलवार से तोते का सिर धड़ से अलग कर दिया। राजा ने वह फल बाहर फेंक दिया। कुछ समय बाद उसी जगह पर एक पेड़ उगा। राजा ने सख्त हिदायत दी कि कोई भी इस पेड़ का फल ना खाएं क्यूंकि राजा को लगता था कि यह अमृत फल विषाक्त होते हैं और तोते ने यही फल खिलाकर उसे मारने की कोशिश की थी।

एक दिन एक बूढ़ा आदमी उस पेड़ के नीचे विश्राम कर रहा था। उसने एक फल खाया और वह जवान हो गया क्यूंकि उस वृक्ष पर उगे हुए फल विषाक्त नहीं थे। जब इस बात का पता राजा को चला तो उसे बहुत ही पछतावा हुआ उसे अपनी करनी पर लज़्ज़ा हुई।

तीसरे राजकुमार के मुख से यह कहानी सुनकर राजा बहुत ही खुश हुआ और तीसरे राजकुमार को सही उत्तराधिकारी समझते हुए उसे ही अपने राज्य का राजा चुना।

शिक्षा:-
किसी भी अपराधी को सजा देने से पहले यह देख लेना चाहिए कि उसकी गलती है भी या नहीं, कहीं भूलवश आप किसी निर्दोष को तो सजा देने नहीं जा रहे हैं। निरपराध को कतई सजा नहीं मिलनी चाहिए..!!

1 year, 9 months ago


#motvational_story

झटक कर आगे बढ़ जाएं

बहुत समय पहले की बात है , किसी  गाँव में एक किसान रहता था . उसके पास बहुत सारे जानवर थे , उन्ही में से

एक गधा भी था . एक दिन वह चरते चरते खेत में बने एक पुराने सूखे हुए कुएं के पास जा पहुचा और अचानक ही उसमे  फिसल कर गिर गया . गिरते ही उसने जोर -जोर से चिल्लाना शुरू किया -” ढेंचू-ढेंचू ….ढेंचू-ढेंचू ….”

उसकी आवाज़ सुन कर खेत में काम कर रहे लोग कुएं के पास पहुचे, किसान को भी बुलाया गया .

किसान ने स्थिति का जायजा लिया , उसे गधे पर दया तो आई लेकिन उसने मन में सोचा  कि इस बूढ़े गधे को बचाने से कोई लाभ नहीं है और इसमें मेहनत भी बहुत लगेगी और साथ ही कुएं की भी कोई ज़रुरत नहीं है , फिर उसने बाकी लोगों से कहा , “मुझे नहीं लगता कि हम किसी भी तरह इस गधे को बचा सकते हैं अतः  आप सभी अपने-अपने काम पर लग जाइए, यहाँ समय गंवाने से कोई लाभ नहीं.”

और ऐसा कह कर वह आगे बढ़ने को ही था की एक मजदूर बोला, ” मालिक , इस गधे ने सालों तक आपकी सेवा की है , इसे इस तरह तड़प-तड़प के मरने देने से अच्छा होगा की हम उसे इसी कुएं में दफना दें .”

किसान ने भी सहमती जताते हुए उसकी हाँ में हाँ मिला दी.

” चलो हम सब मिल कर इस कुएं में मिटटी डालना शुरू करते हैं और गधे को यहीं दफना देते हैं”, किसान बोला.

गधा ये सब सुन रहा था और अब वह और भी डर गया  , उसे लगा कि  कहाँ उसके मालिक को उसे बचाना चाहिए तो उलटे वो लोग उसे दफनाने की योजना बना रहे हैं .  यह सब  सुन  कर वह भयभीत हो गया , पर उसने हिम्मत नहीं हारी और भगवान् को याद कर वहां से निकलने के बारे में सोचने लगा ….

अभी वह अपने विचारों में खोया ही था कि  अचानक उसके ऊपर मिटटी की बारिश होने लगी, गधे ने मन ही मन सोचा कि भले कुछ हो जाए वह अपना प्रयास नहीं छोड़ेगा और

आसानी से हार नहीं मानेगा। और फिर वह पूरी ताकत से उछाल मारने लगा .

किसान भी औरों की तरह मिटटी से भरी एक बोरी कुएं में झोंक दी और उसमे  झाँकने लगा , उसने देखा की जैसे ही मिटटी गधे के ऊपर पड़ती वो उसे अपने शरीर से झटकता  और उचल कर उसके ऊपर चढ़ जाता .जब भी उसपे मिटटी डाली जाती वह यही करता ….झटकता और ऊपर चढ़ जाता …. झटकता और ऊपर चढ़ जाता ….

किसान भी समझ चुका  था कि अगर वह यूँही मिटटी डलवाता रहा तो गधे की जान बच सकती है .

फिर क्या था वह मिटटी डलवाता गया और देखते-देखते गधा कुएं के मुहाने तक पहुँच गया, और अंत में कूद कर बाहर आ गया.

शिक्षा:-
हमारी ज़िन्दगी भी इसी तरह होती है , हम चाहे जितनी भी सावधानी बरतें कभी न  कभी मुसीबत रुपी गड्ढे में गिर ही जाते हैं .पर  गिरना प्रमुख नहीं है, प्रमुख है संभलना  . बहुत से लोग बिना प्रयास किये ही हार मान लेते हैं , पर जो प्रयास करते हैं भगवान् भी किसी न किसी रूप में उनके लिए मदद भेज देता है। यदि गधा लगातार बचने का प्रयास नहीं करता तो किसान के दिमाग में भी यह बात नहीं आती को उसे बचाया जा सकता है

1 year, 9 months ago


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मेरे नाम का गुब्बारा

एक बार पचास लोगों का ग्रुप किसी सेमीनार में हिस्सा ले रहा था। सेमीनार शुरू हुए अभी कुछ ही मिनट बीते थे कि स्पीकर अचानक ही रुका और सभी पार्टिसिपेंट्स को गुब्बारे देते हुए बोला , ” आप सभी को गुब्बारे पर इस मार्कर से अपना नाम लिखना है। ”
सभी ने ऐसा ही किया।

अब गुब्बारों को एक दुसरे कमरे में रख दिया गया।

स्पीकर ने अब सभी को एक साथ कमरे में जाकर पांच मिनट के अंदर अपना नाम वाला गुब्बारा ढूंढने के लिए कहा।
सारे पार्टिसिपेंट्स तेजी से रूम में घुसे और पागलों की तरह अपना नाम वाला गुब्बारा ढूंढने लगे। पर इस अफरा-तफरी में किसी को भी अपने नाम वाला गुब्बारा नहीं मिल पा रहा था…
पांच मिनट बाद सभी को बाहर बुला लिया गया।

स्पीकर बोला , ” अरे! क्या हुआ , आप सभी खाली हाथ क्यों हैं ? क्या किसी को अपने नाम वाला गुब्बारा नहीं मिला ?”

” नहीं ! हमने बहुत ढूंढा पर हमेशा किसी और के नाम का ही गुब्बारा हाथ आया…”, एक पार्टिसिपेंट कुछ मायूस होते हुए बोला।
कोई बात नहीं , आप लोग एक बार फिर कमरे में जाइये , पर इस बार जिसे जो भी गुब्बारा मिले उसे अपने हाथ में ले और उस व्यक्ति का नाम पुकारे जिसका नाम उसपर लिखा हुआ है। “, स्पीकर ने निर्दश दिया।

एक बार फिर सभी पार्टिसिपेंट्स कमरे में गए, पर इस बार सब शांत थे , और कमरे में किसी तरह की अफरा-तफरी नहीं मची हुई थी। सभी ने एक दुसरे को उनके नाम के गुब्बारे दिए और तीन मिनट में ही बाहर निकले आये।

स्पीकर ने गम्भीर होते हुए कहा , ” बिलकुल यही चीज हमारे जीवन में भी हो रही है। हर कोई  अपने लिए ही जी रहा है , उसे इससे कोई मतलब नहीं कि वह किस तरह औरों की मदद कर सकता है , वह तो  बस  पागलों की तरह अपनी ही खुशियां ढूंढ रहा है  , पर बहुत ढूंढने के बाद भी उसे कुछ नहीं मिलता।

शिक्षा :-दोस्तों हमारी ख़ुशी दूसरों की ख़ुशी में छिपी हुई है। जब तुम औरों को उनकी खुशियां देना सीख जाओगे तो अपने आप ही तुम्हे तुम्हारी खुशियां मिल जाएँगी।और यही मानव-जीवन का उद्देश्य है।

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