꧁•༆ श्रीमद् भागवत गीता ༆•꧂

Description
यहाँ पर हम प्रतिदिन भगवद गीता से एक श्लोक पोस्ट करते हैं , जिसमें इसका तात्पर्य भी शामिल है|

हिन्दूराष्ट्र प्रकल्प अंतर्गत स्वस्थ-क्रान्ति को उद्भासित करने हेतु नभोमार्गीय प्रचार-प्रसार प्रकल्प।
जय श्री कृष्ण?
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Last updated 2 months, 3 weeks ago

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Last updated 2 months ago

2 months, 2 weeks ago
भगवद्गीता 5.16

भगवद्गीता 5.16

श्रीभगवान् ने अर्जुन से कहा: "किन्तु जब कोई उस ज्ञान से प्रबुद्ध होता है, जिससे अविद्या का विनाश होता है, तो उसके ज्ञान से सब कुछ उसी तरह प्रकट हो जाता है, जैसे दिन में सूर्य से सारी वस्तुएँ प्रकाशित हो जाती हैं |"

कृपया इस पेजको आपके संबधित जन, मित्र, सहकर्मी लोगो तक शेर करें ताकि भगवद्गीताकी शिक्षाका लाभ उन्हें भी हो पाए

@GITA_GYAN

2 months, 2 weeks ago

Milte hai baad me
Tab tak ke liye goodbye❤️

2 months, 2 weeks ago
तुमच्या सर्व इच्छा आकांक्षा पूर्ण होवोत

तुमच्या सर्व इच्छा आकांक्षा पूर्ण होवोत

आणि भरभराट होवो हीच सदिच्छा!

मंगलमूर्ती मोरया!!!❣️❣️❣️

@GITA_GYAN

5 months, 1 week ago
कुलदेवी और देवता

कुलदेवी और देवता

अपने कुलदेवी/देवता की नित्य, वार्षिक और विशेष (विवाह व संतान होने पर) पूजा अगर आप करते हैं, अगर नित्य प्रेम और श्रद्धा से आप उनका ध्यान करते हैं। तो आपकी आधी समस्याओं का समाधान अपने आप ही हो जाएगा।

कुलदेवी/देवता की पूजा हमारे लिए एक कवच की तरह होती है जो हमारी हर विपरीत परिस्थितियों में रक्षा करती है।

देवी कटक चंडिका❤️

@GITA_GYAN

5 months, 1 week ago
भगवद्गीता 3.24

भगवद्गीता 3.24

श्रीभगवान् ने अर्जुन से कहा: "यदि मैं नियतकर्म न करूँ तो ये सारे लोग नष्ट हो जायं | तब मैं अवांछित जन समुदाय (वर्णसंकर) को उत्पन्न करने का कारण हो जाऊँगा और इस तरह सम्पूर्ण प्राणियों की शान्ति का विनाशक बनूँगा |"

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@GITA_GYAN

5 months, 1 week ago

निर्जला एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएं

एक बार भगवान वेद व्यास जी हस्तिनापुर आये। वहा उनकी भेंट भीम जी (५ पांडवो में से एक) से हुई।
भीम जी ने मुनिवर को देख कर, उन्हें प्रणाम करते हुए अपनी व्यथा बताई।
४ पांडव और माँ द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत करते थे, पर भीम जी में अग्नि तत्व की प्रधानता होने के कारण, उनसे ये नहीं हो पाता था। और एकादशी का व्रत न करने वाला नरक गामी होता है, यह जानकर उनका बहुत  विलाप हुआ करता था।

यह व्यथा जान कर, मुनिश्रेष्ठ ने, उन्हें निर्जला एकादशी के व्रत का ज्ञान दिया। जिसके व्रत से 24 एकादशी के व्रत का फल प्राप्त होता है।
इस दिन, सूर्य उदय से लेकर अगले दिन सूर्य उदय तक निर्जल और निराहार रहना होता है। यह कहते हैं कि भगवान खुद अपने भक्तों को प्यास और भूख आदि नहीं लगाने देते।

जो लोग इतने लम्बे समय तक निर्जल नहीं रह सकते, उन्हें सूर्य उदय से लेकर सूर्य अस्त तक निर्जल रहना चाहिए, व पूरे समय निराहार रहना चाहिए। इस से 12 एकादशी का फल प्राप्त होता है।

इस दिन व्रत न रखने पर भी, दान अवश्य करना चाहिए:
गौ माता को जल और भोजन खिलाना चाहिए
पानी से भरा हुआ मटका, 5 फलो के साथ, एक हाथ वाले पंखे के साथ मंदिर में दान करना चाहिए।
प्यासे मनुष्य को जल अवश्य पिलाना चाहिए।

जय माँ कालका, जय माँ विंध्यवासिनी!

@GITA_GYAN

5 months, 1 week ago
**राम अवतार ***❤️***

राम अवतार ❤️**

प्रसिद्ध हिंदू इतिहास, रामायण में जहां बुराई पर अच्छाई की जीत हुई, वहां भगवान विष्णु के सातवें रूप को देखा गया। राजा राम के रूप में प्रकट होकर, उन्होंने एक भयंकर युद्ध के बाद राक्षस-राजा रावण को हराया।@GITA_GYAN Follow us??? @mrityunjaybharat Follow us???** @cyber_sena2

5 months, 2 weeks ago

जय माँ कालका, जय माँ विंध्यवासिनी!
आप सबको विंध्यवासिनी षष्ठी और अरण्य षष्ठी की शुभ कामनाएँ!

आज माँ भगवती विंध्यवासिनी के विषय में जानते हैं!

माँ विन्ध्यवासिनी त्रिकोण यन्त्र पर स्थित तीन रूपों के द्वारा अपनी अद्वितीय महत्ता का प्रदर्शन करती हैं। वह आदिशक्ति महालक्ष्मी के रूप में, महासरस्वती के रूप में अष्टभुजी अर्थात महासरस्वती और महाकाली के रूप में कालीखोह को धारण करती हैं।

जब ब्रह्मा जी ने स्वायम्भुव मनु और शतरूपा को उत्पन्न किया। तब (स्वयंभू मनु) की तपस्या और भगवती का आशीर्वाद ने उन्हें निष्कण्टक राज्य और परम पद प्राप्ति की प्राप्ति में मदद की। इसके बाद महादेवी विंध्याचल पर्वत पर चली गईं.

भगवती माँ विंध्यवासिनी, समस्त ब्रह्माण्ड और चराचर जगत की मूल हैं। इनको मां विंधेश्वरी भी कहते हैं। माँ भगवती के इस स्वरूप की प्राकट्य की कथा कहीं वर्णित नहीं है, इसलिए भगवती को साक्षात आदिपराशक्ति बताया जाता है, जिनके चरण नखो से अनंत कोटि ब्रह्माण्ड उत्त्पन होते हैं।

त्रिकोण यात्रा:- भगवती माँ विंध्यवासिनी का स्थान विंध्यांचल पर्वत पर स्थित है, जिसमें मां समस्त शक्तियों के साथ राजराजेश्वरी और पुरुषाकृति स्वरूप में विराजमान रहती है। त्रिकोण यात्रा में उन सभी शक्तियों के मंदिरों के दर्शन करने होते हैं। 1 त्रिकोण यात्रा- 100 चंडी पाठ का फल देता है।

जय माँ कालका, जय माँ विंध्यवासिनी!

@GITA_GYAN

5 months, 2 weeks ago

भगवती और महाशक्तियों का बलि नैवेद्य और सनातन धर्म
जय माँ कालका !

आज के समय में, हिंदू सनातन संस्कृति के अंदर आने वाले बहुत से विधानों पर, कुछ विधर्मियो ने अपने कटाक्षों के माध्यम से गलत टिपण्णी करके उन्हें बदनाम करने का प्रयास किया है।
उनमें से एक बली प्रथा है।

पहले कुछ स्वाध्याय करते हैं:-
सनातन धर्म के महागुरु आदि शंकराचार्य जी द्वारा, पंच प्रमुख परम्परा स्थापित की गई है।
उनमे पंचतय्यन के अनुसार भगवान विष्णु, भगवान सदाशिव, भगवती मां आदिपराशक्ति, भगवान गणपति और भगवान सूर्यनारायण की पूजा विधान होते हैं।

बली विधान गलत या सही??
सनातन धर्म के 5 प्रमुख संप्रदायों के अपने अलग-अलग मत और नियम हैं, बलि का विधान शाक्त परम्परा के अंदर आता है.
बली, देना सही है। लेकिन, पशुबली देना जरूरी नहीं है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि जो इंसान किन्हीं महाशक्ति की पूजा करवा रहा है, उनकी पूजा पद्धति  का विधान क्या है।
बली के प्रकार क्या है?? क्या बलि सात्विक भी होती है?
बलि मुख्य रूप से सात्विक और तामसिक दोनों प्रकार की होती है, सात्विक बलि को सांकेतिक बलि भी कहते हैं।
ज़्यादातर हर देवी भक्ति ने सांकेतिक बलि का नैवेद्य अर्पित किया ही होता है (वो कैसे? आगे जानेंगे).

तामसिक बली:- किसी पशु की बली देना, तामसिक बली है। बली हर पशु की नहीं दी जाती। बली-पशु में भी कुछ विशेषताएं होती हैं, जिन्हें पहचान कर, पशु को बली के लिए चुना जाता है। (परंतु किसी जीव की हत्या करना, पाप है। तो ये क्यों?) बकरा, मुर्गा, भैसा आदि ये सब जंवारो का प्रारब्ध ही इस प्रकार का होता है, कि ये मृत्यु उपरान्त अगले जन्म में बार बार  एक ही योनि में जन्म लेते है....अर्थात बकरा मर गया, और अगले जन्म में फिर से बकरा ही बन गया...
इनकी इस दुविधा से मुक्ति तब संभव होती है, जब इनकी बली दी जाए...

तामसिक बली कौन दे सकता है?
अगर किसी के घर में पहले से ही पशुबली दी जाती है, तो फिर वो तामसिक बाली देने के लिए योग्य है। इसके अलावा अगर कोई इंसान शक्ति उपासना की तामसिक पद्धति से दीक्षित है, वो तामसिक बली देने के लिए अधिकृत है तो वह बली दे सकता है।

सात्विक या सांकेतिक बली:-
जो लोग, तामसिक बाली के लिए अनाधिकृत है  और किसी जानवर को मरते हुए नहीं देख सकते। उनके लिए सांकेतिक बाली का प्रावधान है। जैसे:- (सीता फल की बली- घर के बड़े बेटे की बली के समान मानी जाती है) ,( नारियल की बली:-खुद के शीश की बली के समान ).

अब बात आती है, किसी जानवर को मार डालने में और बली में क्या अंतर है??
(बलि मास को शोंधित मास कहते है)
मास और शोण्धित मास दोनो में अंतर होता है। विधर्मियो के यहाँ पर जानवर को बीच में से काट कर लटका देते है, वो वहा हवा में लटका लटका तड़प तड़प कर मरजाता है।
वही शोण्धित  मास, हमारे धर्म में होता है, जहां पर एक झटके में ही पशु के धड़ को उसके सिर से अलग कर दिया जाता है..वही उसके तड़पने वाला स्टेज नहीं होता। एक झटके में काम ख़तम.

अब बात आती है, बलि भगवती क्यों ग्रहण करती है??
बलि की आवश्यकता माँ भगवती को नहीं होती। बल्की उनके अंशात्म रूप (उनकी योगिन्या, उनकी गणिकाये, उनके गण) को त्रिप्त करने हेतु बलि का विधान है। अर्थात माँ भगवती की योगिनियों को उनके गणों को तृप्त करने हेतु कुछ कुछ जगहों पर बलि दी जाती है।

योगिनियो को बाली देने की क्या आवश्यकता है?
हर कोई इतना समर्थशाली या योग्य नहीं होता कि वह साक्षात मां आदिपराशक्ति से सीधे संपर्क करे, यानी सीधे संपर्क में आए।
हमारी पूजा आराधना आदि को भगवती तक माँ की योगिन्या ही पौहाचाति हैं। इसलिए अगर वो तृप्त नहीं होंगी, तो साधारण लोगों का पूजन शक्तियों तक पहुँच ही नहीं पायेगा।
इसीलिये मंदिरो में बली दी जाती है।

वैष्णव सम्प्रदाय और मास भक्षण:-
मास भक्षण को शास्त्रों में गलत बताया गया है, और बिलकुल यह गलत है भी। इसमें हम वैष्णव संप्रदाय का समर्थन करेंगे. परंतू एक साधारण मास और बली मास (शोधित मास) अलग अलग है.

उन लोगो का क्या जो बाली के विरुद्ध है?

जो लोग माँ भगवती के बलि नैवेद्य को देख कर उसकी निंदा करते हैं, उनके ऊपर कटाक्ष करते हैं। उन लोगों को देख कर भगवती की योगिन्या नृत्य करते हैं, और उनका भक्षण करने को तत्काल तत्पर होजाति है।

बाली विधान के विषय में कहा से अध्ययन कर सकेत है?
दुर्गा सप्तशती, मार्कण्डेय पुराण और कालिका पुराण

जय माँ कालका, जय माँ विंध्यवासिनी!

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