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सुना है इश्क कमाल की चीज है
जरा हम भी कर के देखते हैं।
लौटकर आया नहीं कोई उस गली से
चलो आज हम भी गुजर के देखते हैं।
उनकी आंखों की चमक लाजवाब है
पल, दो पल आंखों में ठहर के देखते हैं।
सुना है, उनका चेहरा चमकता माहताब है
चलो आज उन्हें हम, जी भर के देखते हैं।
कयामत हैं वो, हर अदा कहर ढाती है
एक बार आज उन पर मर के देखते हैं।
मेरी आंखों में चमकना तो नियामत है उनकी
पलकों में उनका चेहरा भर के देखते हैं।
कुबूल नहीं करते वो इश्कनामा किसी का
चलो आज ये गुस्ताखी भी करके देखते हैं।
गम नहीं, कि फिर अब हम रहें न रहें "मन"
एहले वफा इश्क आजमाकर के देखते हैं।
जरा सोचो कि क्या क्या और क्या हो रहा है
दिल हमारा ये, अब तुम्हारा हुआ जा रहा है।
बदतमीज हो गई हैं निगाहें अब सुनती नहीं मेरी
जिधर तुम जाते, नजर लिए चला जा रहा है।
अभी अभी तो इक आशियाना उजड़ा था इश्क में
सुना सब है, पर हर बात कर अनसुना जा रहा है।
कि तेरी गली में अब भी खिलते हैं फूल सुर्ख गुलाबी
चुनने को बेकरार, दहकती आग में जला जा रहा है।
तुम्हें कुबूल है, तो सारी दुनिया की हुकूमत मेरी
"मन" दरखास्त तुझसे इख्लास किया जा रहा है।
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तो अभी फ़ालो करे
?????
बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना!
हवा लगी पश्चिम की सारे कुप्पा बनकर फूल गए
ईस्वी सन तो याद रहा अपना संवत्सर भूल गए
चारों तरफ नए साल का ऐसा मचा है हो-हल्ला
बेगानी शादी में नाचे ज्यों दीवाना अब्दुल्ला
धरती ठिठुर रही सर्दी से घना कुहासा छाया है
कैसा ये नववर्ष है जिससे सूरज भी शरमाया है
सूनी है पेड़ों की डालें, फूल नहीं हैं उपवन में
पर्वत ढके बर्फ से सारे, रंग कहां है जीवन में
बाट जोह रही सारी प्रकृति आतुरता से फागुन का
जैसे रस्ता देख रही हो सजनी अपने साजन का
अभी ना उल्लासित हो इतने आई अभी बहार नहीं
हम नववर्ष मनाएंगे, न्यू ईयर हमें स्वीकार नहीं
लिए बहारें आँचल में जब चैत्र प्रतिपदा आएगी
फूलों का श्रृंगार करके धरती दुल्हन बन जाएगी
मौसम बड़ा सुहाना होगा दिल सबके खिल जाएँगे
झूमेंगी फसलें खेतों में, हम गीत खुशी के गाएँगे
उठो खुद को पहचानो यूँ कबतक सोते रहोगे तुम
चिन्ह गुलामी के कंधों पर कबतक ढोते रहोगे तुम
अपनी समृद्ध परंपराओं का मिलकर मान बढ़ाएंगे भारतवर्ष के वासी अब अपना नववर्ष मनाएंगे
?हमारी संस्कृति? ??हमारी विरासत??
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**नववर्ष की झलक दिखलाती.... अंकुर आनंद जी की कविता
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्योहार नहीं।
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये व्यवहार नहीं
धरा ठिठुरती है सर्दी से
आकाश में कोहरा गहरा है
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर
सर्द हवा का पहरा है
सूना है प्रकृति का आङ्गन
कुछ रङ्ग नहीं , उमङ्ग नहीं
हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव वर्ष का ये कोई ढङ्ग नहीं
चन्द मास अभी इन्तज़ार करो
निज मन में तनिक विचार करो
नये साल नया कुछ हो तो सही
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही
उल्लास मन्द है जन -मन का
आयी है अभी बहार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्योहार नहीं।
ये धुन्ध कुहासा छंटने दो
रातों का राज्य सिमटने दो
प्रकृति का रूप निखरने दो
फागुन का रङ्ग बिखरने दो
प्रकृति दुल्हन का रूप धार
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य – श्यामला धरती माता
घर -घर खुशहाली लायेगी
तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जायेगा
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
जय गान सुनाया जायेगा
युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध
नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
आर्यों की कीर्ति सदा -सदा
नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
अनमोल विरासत के धनिकों को
चाहिये कोई उधार नहीं
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
है अपना ये त्योहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये त्योहार नहीं।
जनजागृति के लिये साझा अवश्य करें।..
वन्दे मातरम्**@mj_verse
मुझे नहीं पता
चाँद कैसा दिखता है पास से
क्या तारे सच में खूबसूरत होंगे
मैं इतना नहीं सोचता
जानता हूँ
तो बस इतना कि
तू हो इस कायनात की सबसे खूबसूरत कला
तुम्हें बनाया गया है
किसी ऐसे साँचे में ढालकर जहां कोई दुबारा न ढला
तुम मेरे जीवन की प्रस्तावना और रूपरेखा दोनो हो
धरा से लेकर विस्तृत आकाश तक फैले हुए
दूर कहीं जमीं को छू रहे गगन से
समुंदर की तली तक
मेरा जहां तक जो भी हैं, सिर्फ तुम हो
मेरी हँसी, मेरी खुशी, आबरू, आशिक़ी, ज़िंदगी तुम हो..!
® 𝐎𝐟𝐟𝐢𝐜𝐢𝐚𝐥 𝐂𝐡𝐚𝐧𝐧𝐞𝐥
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