Trād Digvijaya

Description
卐 शङ्करस्य शासनम् 卐

॥ परंपरावाद ● मनुवाद ● राजतन्त्र ● वर्णाश्रम ॥

नोट:- यहाँ हर प्रकार की बीमारी-मानसिक कोढ़/विक्षिप्तता/दिवालियेपन का उपचार किया जाता है।

शास्त्रसर्वोपरि!
We recommend to visit

Welcome to @UtkarshClasses Telegram Channel.
✍️ Fastest growing Online Education App 🏆
🔰Explore Other Channels: 👇
http://link.utkarsh.com/UtkarshClassesTelegram
🔰 Download The App
http://bit.ly/UtkarshApp
🔰 YouTube🔔
http://bit.ly/UtkarshClasses

Last updated 1 month ago

https://telegram.me/SKResult
☝️
SK Result
इस लिंक से अपने दोस्तों को भी आप जोड़ सकते हो सभी के पास शेयर कर दो इस लिंक को ताकि उनको भी सही जानकारी मिल सके सही समय पर

Last updated 1 month, 2 weeks ago

प्यारे बच्चो, अब तैयारी करे सभी गवर्नमेंट Exams जैसे SSC CGL,CPO,CHSL,MTS,GD,Delhi पुलिस,यूपी पुलिस,RRB NTPC,Group-D,Teaching Exams- KVS,CTET,DSSSB & बैंकिंग Exams की Careerwill App के साथ बहुत ही कम फ़ीस और इंडिया के सबसे बेहतरीन टीचर्स की टीम के साथ |

Last updated 3 weeks, 6 days ago

1 month, 2 weeks ago
**सन्ध्याहीनो हि यो विप्र: स्नानहीनस्तथैव च।

सन्ध्याहीनो हि यो विप्र: स्नानहीनस्तथैव च।
स्नानहीनो मलाशी स्यात्सन्ध्याहीनो हि भ्रूणहा॥

(बृहद्-यम स्मृति ४।५१,५२)
स्नानकर्मसे हीन ब्राह्मण मलभोजन करनेवाले के तुल्य और सन्ध्योपासनासे हीन ब्राह्मण भ्रूणहत्यारेके समान है॥

तपः श्रुतं च योनिश्चेत्येतद् ब्राह्मणकारणम्।
तप: श्रुताभ्यां यो हीनो जातिब्राह्मण एव स:॥

(अष्टाध्यायी-महाभाष्य ५।१।१५)
योनि(असमानगोत्रप्रवर वाले असपिंड ब्राह्मण माता-पिता द्वारा ब्राह्मण कुलमें जन्म) + श्रुत(उपनयनादिपूर्वक वेदाध्ययन) + तप, ये ब्राह्मणत्व के कारण हैं। तप, वेदाध्ययन (एवं उसके लिए अनुकूल समयसे स्वशाखाऽनुसार विधिवत् उपनयनादि संस्कार) से रहित केवल 'जातिब्राह्मण' (जाति-मात्रेण) ब्राह्मण है॥

इसीलिए स्वशाखोक्त विधिद्वारा उपनीत द्विजाति पुरुष को शौचाचार, नित्यनैमित्तिक स्नान, सन्ध्यावन्दन, नित्यपूजनादि कर्म विधिवत् करने चाहिए, अनिवार्य है !!

1 month, 2 weeks ago
**हमें चमत्कार, सिद्धि या शान्ति आदि …

हमें चमत्कार, सिद्धि या शान्ति आदि गुणों से मोहित नहीं होना है! हमें वेद-पुराणों के अनुसार ही चलना होगा चाहे उसमें कमियाँ ही क्यों न दीखें!
यह वैदिकों का धर्म है।

2 months, 2 weeks ago

जिस प्रकार अन्न का दाना नाली में गिर जाए तो वह अग्राह्य होता है; तदनुसार ही दयानन्द जैसे असम्प्रदायवित् व्यक्तियों की पुस्तकों में शास्त्रवचन भी स्वार्थमें प्रयुक्त न होकर अनर्थप्रतिपादक हो जाते हैं अतः उनकी 'किताबों' से अग्राह्य बन जाते हैं।

अन्न यदि नाली में गिर जाए तब वह नाली का मल ही बनकर रह जाता है।

4 months, 2 weeks ago
4 months, 2 weeks ago

पार्थिवसिद्धिविनायक पूजा-विधिः

4 months, 2 weeks ago

स्त्रीशूद्रेभ्यो मनुं दद्यात् स्वाहाप्रणववर्जितम्।
(नारदपाञ्चरात्र)
स्त्री और शूद्रों को स्वाहा तथा प्रणवरहित मन्त्र-दीक्षा देनी चाहिये।

स्त्रीशूद्राणामयं मन्त्रो नमोऽन्तश्च सुखावहः।
एतज्ज्ञात्वा महेशानि! चाण्डालानपि दीक्षयेत्॥

(कुलार्णव)
स्त्री और शूद्रों के लिये 'नमः' जिसके अन्त में हो ऐसा मन्त्र सुखदायक माना गया है। हे देवि! इन सभी बातों को जानकर चाण्डालों को भी दीक्षा देनी चाहिये।

श्रीविष्णुकोटिमन्त्रेषु कोटिमन्त्रे शिवस्य च।
शूद्राणामधिकारोऽस्ति स्वाहाप्रणववर्जिते॥

(मुण्डमालातन्त्र)
शिव और विष्णु जी के ऐसे मन्त्र जिसमें वैदिक-प्रणव(ॐ) तथा 'स्वाहा' न हों, वे शूद्रों के द्वारा ग्राह्य हैं।

चतुर्दशस्वरो देवि पुण्यसिद्धि प्रदायक:।
नादबिंदुसमोपेतो दीर्घप्रणव उच्यते॥
तंत्रोक्त: प्रणव: सोऽपि स्त्री शूद्राणां प्रशस्यते ।
तस्मात्स्त्रीणाञ्च शूद्राणां स एव परिकीर्तित:॥

(यामल तन्त्र)
ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को वेदोक्त मूल प्रणव (ॐ), जिसमें साढ़े तीन मात्रा होती है उसका उच्चारण करना चाहिए; किन्तु स्त्री और शूद्रों को बिंदु एवं चौदहवें स्वर से युक्त दीर्घ प्रणव (औं) जिसमें ढाई मात्रा होती है, उसका उच्चारण करना चाहिए।

स्वाहाप्रणवसंयुक्तं शूद्रे मन्त्रं ददद् द्विज:।
शूद्रोनिरयगामी स्याद्ब्राह्मणो यात्यधोगतिम्॥

(देवीयामल तन्त्र)
प्रणवं वैदिक चैव शूद्रे नोपदिशेच्छिवे।
(परमानन्द तन्त्र, त्रयोदश उल्लास)
जो ब्राह्मण शूद्र को 'स्वाहा' एवं 'वैदिक-प्रणव' से युक्त मन्त्र देता है, वह मन्त्रग्राही शूद्र नरक जाता है और ब्राह्मण भी अधोगति को प्राप्त होता है।

तंत्रोक्तं प्रणवं देवि वह्निजायां च सुन्दरि।
प्रजपेत् सततं शूद्रो नात्र कार्या विचारणा॥

(भूतशुद्धितन्त्र)
वह्निजायास्थले मायां दत्वा शूद्रो जपेद्यदि।
(शाक्तानन्दतरंगिणी)

वेदोक्त वह्निजाया (स्वाहा) और वेदोक्त प्रणव (ॐ) के स्थान पर तंत्रोक्त वह्निजाया (ह्रीं) तथा तथा तंत्रोक्त प्रणव (औं) का प्रयोग करके शूद्रों को मंत्र देना चाहिए।
_______________________भगवान ने सभी के कल्याण का विधान किया है। भगवान पक्षपाती नहीं— समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः।,, मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः। स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम्॥
ʼʼसनातन धर्म में फलचौर्य नहीं हैʼʼ। विधियाँ भिन्न हो सकती हैं किंतु फल सभी के लिए समान है। परिवार में पोषण सभी के लिए है। जिसे जिस रूप में पोषण की आवश्यकता उसे उस पोषण उस ही रूप में प्राप्त होना चाहिए। शिशु के लिए माता के दुग्ध के रूप में, युवा के लिए कठोर चने आदि के रूप में, अतः जिसकी जैसी पचाने की क्षमता उसके लिए वैसा आहार, पर पोषण से वंचित कोई नहीं। धर्म की भी ऐसी ही व्यवस्था है।

यह सब भेद न जानते हुए जो ईश्वर को झूठा कहे, पक्षपाती कहे वह तो महामूर्ख ही है।
? नारायण ?

7 months, 1 week ago
We recommend to visit

Welcome to @UtkarshClasses Telegram Channel.
✍️ Fastest growing Online Education App 🏆
🔰Explore Other Channels: 👇
http://link.utkarsh.com/UtkarshClassesTelegram
🔰 Download The App
http://bit.ly/UtkarshApp
🔰 YouTube🔔
http://bit.ly/UtkarshClasses

Last updated 1 month ago

https://telegram.me/SKResult
☝️
SK Result
इस लिंक से अपने दोस्तों को भी आप जोड़ सकते हो सभी के पास शेयर कर दो इस लिंक को ताकि उनको भी सही जानकारी मिल सके सही समय पर

Last updated 1 month, 2 weeks ago

प्यारे बच्चो, अब तैयारी करे सभी गवर्नमेंट Exams जैसे SSC CGL,CPO,CHSL,MTS,GD,Delhi पुलिस,यूपी पुलिस,RRB NTPC,Group-D,Teaching Exams- KVS,CTET,DSSSB & बैंकिंग Exams की Careerwill App के साथ बहुत ही कम फ़ीस और इंडिया के सबसे बेहतरीन टीचर्स की टीम के साथ |

Last updated 3 weeks, 6 days ago