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SK Result
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दुष्प्रभाव:
• उचित उपयोग के बावजूद, कुछ लोगों को मतली, चक्कर या एलर्जी प्रतिक्रिया जैसे दुष्प्रभाव हो सकते हैं। सहनशीलता को मापने के लिए छोटी खुराक से शुरू करना महत्वपूर्ण है।
शिलाजीत एक शक्तिशाली पूरक है जिसमें कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं, लेकिन किसी भी पूरक की तरह, इसे सावधानी के साथ और आदर्श रूप से एक स्वास्थ्य विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में उपयोग किया जाना चाहिए।
निर्धारित शुल्क - ३७०० / १० ग्राम
UPI = SAHAJKY@UPI
संपर्क सूत्र - @sahajky
पारंपरिक उपयोग:
• आयुर्वेद: शिलाजीत सदियों से आयुर्वेदिक चिकित्सा में एक मुख्य तत्व रहा है, जिसका उपयोग विभिन्न रोगों जैसे गठिया, मधुमेह और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकारों के लिए किया जाता है।
• रसायन: आयुर्वेद में इसे 'रसायन' के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसका मतलब है कि यह स्वास्थ्य और कल्याण को पुनः जीवित और बढ़ावा देता है।
उपभोग के रूप:
• पाउडर: इसे दूध या पानी में मिलाया जा सकता है।
• कैप्सूल/टैबलेट: नियमित उपयोग के लिए सुविधाजनक।
• राल: सबसे शुद्ध रूप, जिसे उपभोग से पहले तरल में घोला जा सकता है।
खुराक:
सुश्रुत संहिता अध्याय १३ श्लोक 10-13
तद्भावितं सारगनैहृतदोषो दिनोदये ।।10।।
पिबेत सारोदकेनैव शरलक्षणपिष्टम यथा बलम। जांगलेन रासेनान्नम तस्मिइंगजीर्ने तु भोजयेत ।।11।।
उपयुज्य तुलामेवं गिरिजदमृतोपमात। वपूर्वर्णबलोपेतो मधुमेहविवर्जितः ।।12।।
जीवेद्वरशतम पूर्ण मजरोअमरसन्निभः। शतं शतं तुलायां तु सहस्रं दशतौलिके ।।13।।
अर्थात - शिलाजतु को शालसारादि गण की भावना दें और सूक्ष्म चूर्ण कर इन्ही औषधियों के क्वाथ से वमन विरेचनादि से शुद्ध देहवाले व्यक्ति को प्रातःकाल रोगी का बलाबल देखकर पिलावें। इसके जीर्ण हो जाने पर जांगल प्राणियों के मांसरस से भोजन करावें ।।10-11।।
इससे विधि से सुधा सदृश वाली शिलाजीत को एक तोला प्रमाण सेवन करने पर रोगी मधुमेह से मुक्त होकर हृष्ट पुष्ट शरीर, उत्तम वर्ण और बल वाला हो जाता है तथा जरारहित और अमर (देव) के समान होकर सौ वर्ष तक जीवित रहता है। प्रति एक तुला सेवन करने पर सौ वर्ष की आयु बढ़ती है और दस तुला तक सेवन कसरने से हज़ार वर्ष की आयु प्राप्त होती है। पथ्यापथ्य का सेवन भल्लातक सेवन के अनुसार करें। शिलाजतु के सेवन से प्रमेह, कुष्ठ, अपस्मार, उन्माद, श्लीपद, विष, शोष, शोथ, अर्श, गुल्म, पाण्डु और विषमज्वर अल्पकाल में ही दूर हो जाते हैं। ऐसा कोई रोग नहीं जिसे शिलाजतु नष्ट न कर सकरी हो। शर्करा अश्मरी लो लंबे समय से हो उन्हें भी यह छिन्न भिन्न कर देती है। शिलाजतु को भावना देना तथा आलोडन रोगहितकर औषधियों से करना चाहिए। ।।12-13।।
• खुराक: अनुशंसित खुराक का पालन करना महत्वपूर्ण है, जो शिलाजीत के रूप और सांद्रता के आधार पर भिन्न हो सकता है। किसी स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श करना उचित होता है।
• शुद्धता: शिलाजीत की शुद्धता सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि कभी-कभी इसमें अशुद्धियाँ और भारी धातुएं मिल सकती हैं।
शिलाजीत शोधन
रसरत्नसमुच्चयः, अध्याय 2 श्लोक 117-118
क्षारामल गोजलार्डहोतम शुद्धयत्येव शिलाजतु।
शिलाधातुम् च दुग्धेन त्रिफलमार्कवद्रवैह।
लोहपात्रे विनिक्षिप्य शोधयेदतियन्ततः ।।117।।
क्षारामलग्गुग्गुलूपेतैः स्वेदनीयंत्रमेद्यगैह।
स्वेदितं घटिका मानाच्छिलाधातुरविशुद्ध्यति ।।118।।
अर्थात -
जवाखार, काँजी और गौमूत्र इन तीनों का एकत्र करके इनके द्वारा शिलाजीत को धोने से शिलाजीत शुद्ध होता है। अथवा दूध त्रिफले का काढ़ा और माँगरे का रस इनमे से किसी एक द्रव को लोहे के पात्र में भरकर उसमें शिलाजीत डालकर तेज धूप में रख देवें। इस प्रकार करने से शिलाजीत का श्रेष्ठ भाग ऊपर जम जाता है और मैल नीचे बैठ जाता है। अतः शिलाजीत शुद्ध हो जाता है। अथवा काँजी, जवाखार और गूगल सबको स्वेदन यंत्र में भरकर यथा विधि से एक घड़ी तक वाफे देने से शिलाजीत शुद्ध होता है।
शिलाजीत
शिलाजीत एक जड़ी बूटी युक्त खनिज पदार्थ है जो मुख्य रूप से हिमालय, तिब्बत और अल्ताई पहाड़ों की चट्टानों में पाया जाता है। यह चिपचिपे रिसाव के रूप में उत्पन्न होता है, यह सूक्ष्मजीवों द्वारा कुछ पौधों के धीमी गति से विघटन के कारण सदियों में बनता है। शिलाजीत का आयुर्वेद में बहुत महत्व है इसके माध्यम से तरह तरह की औषधियां बनायीं जाती हैं जो की जटिल से जटिल बीमारियों को कुछ ही समय में ठीक करने की क्षमता रखती हैं, इसका उपयोग कायाकल्प एवं समय से पूर्व आये हुए बुढ़ापे को भी दूर करने में सहायक है. समय से पूर्व आये हुए बुढ़ापे में व्यक्ति अपनी कम उम्र में ही बहुत सी शारीरिक समस्याओ का सामना करने लग जाता है जैसे जोड़ों की समस्या , शारीरिक कमजोरी, गुप्त रोग इत्यादि. शिलाजीत के बारे में कुछ मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
संरचना:
सुश्रुत संहिता भाग 2 के त्रयोदश अध्याय के श्लोक 4 में भगवान धन्वन्तरी जी कहते हैं की
मासे शुक्रे शुचौ चैव शैलाः सूर्यांशुतापिताः,
जतुप्रकाशं स्वरसं शिलाभ्यः प्रस्रवंति हि
शिलाजत्विति विख्यातं सर्वव्याधिविनाशनम
अर्थात जेठ और आषाढ़ मॉस में सूर्य की किरणों से तप्त पर्वत्शिलाओं से लाख की तरह स्वरस स्रवित करते हैं, उसका प्रसिद्धि नाम शिलाजतु है, यह शिलाजतु सभी प्रकार की व्याधियों को नष्ट करता है
• ह्यूमिक पदार्थ: शिलाजीत में ह्यूमिक एसिड और फुल्विक एसिड होते हैं, जो इसके चिकित्सीय गुणों के लिए महत्वपूर्ण घटक हैं।
• खनिज: इसमें लौह, कैल्शियम, मैग्नीशियम और जिंक सहित आवश्यक खनिज प्रचुर मात्रा में होते हैं।
• एंटीऑक्सिडेंट: इसमें विभिन्न एंटीऑक्सिडेंट यौगिक होते हैं जो कोशिकाओं को क्षति से बचाते हैं।
शिलाजीत के प्रकार:
सुश्रुत संहिता भाग 2 के त्रयोदश अध्याय के श्लोक 5 में भगवान धन्वन्तरी जी कहते हैं की
त्रप्वादिनां तु लोहानां षंणामान्यतमानवयं ।।५।।
ज्ञेयं स्वागन्धतस्रचापि षड् योनिप्रथितम क्षितौ
अर्थात शिलाजतु में त्रपु (TIN) आदि छः धातुओं (त्रपुसीस्ताम्र रूप्यसुवर्णकृष्णलौहानि षट) में से कोई एक धातु होती है, शिलाजतु में उपस्थित इन धातुओं को इनकी विशिष्ठ गंध से जाना जा सकता है, पृथ्वी में छः उत्पत्तिस्थल होने से यह (शिलाजतु) षड्योनी है ।।५।।
रसरत्नसमुच्चयः के अध्याय 2 के श्लोक १०९-११४ में बताया गया है की
शिलाजतुर्द्विघा प्रोक्तो गौमुत्राद्यो रसायनः
कर्पूरपूर्वक श्रवान्यस्तत्राद्यो द्विविधः पुनः ।।109।।
ससतवश्चैव निःसत्वसतयोः पूर्वो गुणाधिकः ।
ग्रीष्मे तीव्रार्कतप्तेभ्यः पादेभ्यो हिमभूभृतः ।।110।।
स्वर्ण रूपयार्कगर्भेम्यः शिलाधातुर्विनिःसरेत ।
स्वर्णगर्भगिरेरजातो जपापुष्पनिभो गुरुः ।।111।।
स स्वल्पतिक्तः सुस्वादुः परमं तद्रसायनं ।
रौप्यगर्भगिरेरजातं मधुरं पाण्डुरं गुरु ।।112।।
शिलाजं पित्तरोगंधम विशेषतपाण्डुरोगहृत ।।
ताम्रगर्भगिरेरजातं नीलवर्ण घनम गुरु ।।113।।
वन्हौ क्षिप्तम भवेद्यत्तललिंगाकारमधूमकम ।
सलिलेअथ विलीनं च तच्छुद्धम हि शिलाजतु ।।114।।
अर्थात- शिलाजीत दो प्रकार का होता है। एक गौमूत्र समान गंध वाला और दूसरा कपूर के समान गंध वाला। इनमे से गौमूत्र की गंध वाला शिलाजीत उत्तम रसायन है। यह दो प्रकार का होता है एक सत्वयुक्त और दूसरे निःसत्व। इनमें सत्वयुक्त शिलाजीत अधिक गुण वाला होता है। ग्रीष्म ऋतु में सूर्य के प्रचंड ताप से जब हिमालय पर्वत अत्यंत संतप्त हो जाता है तब उसमें से पिघल कर यह रस रूप से बाहर निकलता है। हिमालय के कितने ही शिखर सोने की खान वाले, कितने ही चांदी के खान वाले और कितने ही ताँबे की कहा वाले हैं। सोने की खान उत्पन्न होने वाला शिलाजीत जवा के फूल के समान लाल और वज़न में भारी होता है। स्वाद में उत्तम, किंचित कड़वा और उत्कृष्ट रसायन है। रूपे की खान से निकलने वाला शिलाजीत स्वाद में मधुर, रंग में कुछ पीला, वज़न में भारी, पित्तविकारनाशक और विशेषकर पाण्डुरोग को नष्ट करने वाला है। ताँबे की खान का शिलाजीत नीले रंग का, गाढ़ा और भारी होता है। शिलाजीत की परीक्षा। जो अग्नि पर डालने से फूलकर लिंगाकार या बतासा सा हो जाता है और पानी में डालने से तत्काल घुल जाता है, वह शिलाजीत उत्तम होता है।
स्वास्थ्य लाभ:
पौरुष शक्ति - सम्भोग क्रीडा वरदान`शतप्रतिशत आयुर्वेदिक
एक दिव्य चमत्कारी औषधि जिसका निर्माण पुरुषों की आन्तरिक एवं सम्भोग शक्ति की वृद्धि हेतु किया गया है. आज के समय में खान पान में अनियंत्रण साथ ही साथ हस्तमैथुन की आदत के कारण पुरुषों में नाना प्रकार के लिंग सम्बन्धी रोग उत्पन्न हो जाते हैं जिस कारण से उनकी सम्भोग शक्ति कम अथवा समाप्त हो जाती है.`इस समय में हस्तमैथुन एवं अन्य लिंग समबन्धि समस्या के कारण पुरुषों को नाना प्रकार से बेइज्जती का सामना करना पड़ता है सम्भोग के दौरान शीघ्रपतन होना , लिंग में उत्तेजना ही ना आ पाना अथवा लिंग के आकर में विकृति होना (जैसे छोटापन, ठेढ़ापन आदि)आज से पूर्व सहज आयुर्वेद द्वारा इस समबन्ध में २ औषधि का निर्माण किया गया है जिसमे १ वीर्य स्तम्भन एवं जीवन आनंद संभवतः वीर्य स्तम्भन हु साधक सेवन कर पाते हैं जिनके पास धनराशी उपलब्ध है लेकिन जीवन आनंद सभी साधक सेवन कर सकें इसीलिए उसे न्यूनतम शुल्क में निर्माण किया गया इससे काम काजी साधक टेबलेट की तरह उसका सेवन कर सकें.
इन दोनों औषधि से साधक को अथाह लाभ प्राप्त हुआ है.
**संस्था द्वारा यह तीसरी औषधि निर्माण की गयी है इसकी आवश्यकता क्यूँ है वह समझना आवश्यक है कई साधक जिनमे अत्यधिक पुन्सकता की कमी है -
जैसे जिनका**
\- मन ही नही होता है शर्म के कारण
\- लिंग में बिलकुल तनाव नही आता है
\- लिंग में कुछ कष्ण के लिए ही तनाव आता है
\- शरीर साथ ही देता है थक जाता है
\- अत्यधिक शीघ्र पतन जैसे ही योनी में प्रवेश किया २ से ३ बार में ही वीर्य निकल गया
\- अत्यधिक स्वप्न दोष
\- सोचने मात्र से ही वीर्य का निकल जाना
\- हमेशा पानी जैसा पदार्थ मूत्र के साथ आना
इस प्रकार की तीव्र नपुंसकता हेतु इस औषधि का निर्माण किया गया है इसके १ माह सेवन मात्र से ही आपको लाभ प्राप्त होने लगेगा और आप अपने पूरे शरीर में बदलाव प्राप्त करेंगे.
ऐसा नही है जिन्हें उपरलिखित समस्याएं हैं वही इसका सेवन कर सकते हैं जिहने अत्यधिक आनंद की अनुभूति चाहिए सम्भोग में वह भी इसका सेवन कर सकते हैं प्रतिदिन.
यह औषधि कैप्सूल में उपलब्ध है जिसमे १ डिब्बे में ६० कैप्सूल प्राप्त होंगे साधक को जोकि १ माह तक चलेगे प्रतिदिन सुबह शाम १ १ कैप्सूल सेवन करना है.
साधकों को यह दिव्य शक्तिशाली पौरुष वर्धक औषधि - 3700 + कूरियर शुल्क (निर्धारित धनराशी)
Bank Account
Name - Sahaj Kriyayog Sadhna Adhyatmik Trust
Account number - 38017006730
State Bank Of India
IFSC - SBIN0016167
MICR - 226002088
Branch - Southcity, Lucknow
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संपर्क सूत्र - @sahajky
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ज्ञान से ही परिवर्तन आएगा, आयुर्वेद से कष्ट हारेगा।
साधक का अनुभव -सर जीवन आनंद दवाई लेने से उत्तेजना में विकास हुआ और टाइमिंग में भी विकास हुआ नाइट फेल की जो बीमारी थी वह भी खत्म हो गई इससे कृपण तेलम से तनाव शक्ति में बहुत ही विकास हुआ
बहेड़ा-
हरण –
शुल्क - नव हृदयं १ + नव हृदयं २ = १८२० + कूरियर शुल्क (१ माह हेतु)
वर्तमान समय में नाना प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं जिनका मूल कारण है अशुद्धि वह खाद्य में हो वायु में जल में अथवा किसी अन्य माध्यम से दूसरा कारण है व्यायाम की कमी, वर्षों पूर्व व्यक्ति भोजन हेतु स्वयं से कुछ न कुछ शारीरिक क्रियाएं करते रहते थे जैसे यदि किसान है तो वह स्वयं से खेती कर रहा है अन्य समुदाय अपने अपने अनुसार कार्य करते थे राजा युद्ध का अभ्यास एवं अन्य अपने अपने मानसिक अथवा शारीरिक अभ्यास करते थे जिससे शरीर वर्तमान समय से अधिक स्वस्थ रहता था लेकिन वर्तमान समय ऐसा है की व्यक्ति अपना अधिकतम समय बैठ के लेट के मोबाइल आदि में पूरी दुनिया देखना चाहते हैं और इसी शरीर में कार्य ना होना की अनेक बीमारियों का कारक है. इसी प्रकार से नयी नयी बीमारी रोज़ मनुष्य को लगती रहती हैं जिससे वह परेशान रहता है.
इन्ही से सम्बंधित हृदय का रोग है जिसे एक बार शुरू हो जाये उसके लिए अनेक समस्याएं हो जाती है क्यूंकि हृदय ही पूर्ण शरीर में रक्त का प्रसार करता है उसमे थोड़ी सी भी कमी शरीर को रोगग्रस्त कर देगी अगर शरीर में रक्त का प्रसार नहीं होगा तो. हृदय रोग होने का कारण रक्त का पूर्ण संचार ना होना भी है जिसमे नस में अनावश्यक तत्त्व जम जाये तो उसमे रक्त का प्रवाह कम हो जाता है अथवा यदि ह्रदय की गति बढ़ जाये रक्त के पतला होने से वह भी एक समस्या है हृदय की मांसपेशियाँ कमजोर हो जाएँ वह भी एक समस्या है इस प्रकार से अनेक समस्याएं है जो हो सकती है और हृदय की समस्या अत्यंत गंभीर है जिसके कारण से मनुष्य की आयु में भी असुविधा होती है. इन्ही सब को देखते हुए निरोग्यम द्वारा औषधि का निर्माण किया गया है जिसके सेवन से साधक अपनी हृदय सम्बन्धी समस्या में कमी ला सकते हैं.
**लाभ –
सर्पगंधा**१. उच्च रक्त चाप में कमी अर्थात रक्त का प्रवाह उचित रूप से होना जितना आवश्यक है
२. अनिद्रा की समस्या से राहत जिससे आकस्मिक अटैक नहीं होते हैं
३. सूजन में कमी – यदि किसी प्रकार से पूर्ण शरीर में अथवा हृदय में किसी भी प्रकार की सूजन है उसे सही करना
४. हृदय की धडकन को शुकारू रूप से चलाना
५. रक्त वाहिकाओं को फैलाकर और हृदय तक ले जाने वाली मांसपेशियों में तंत्रिका कार्य को नियंत्रित करके रक्त परिसंचरण में सुधार करता है।
पुनर्नवा१. यह मन को शांत करके हृदय प्रणाली को आराम देता है, जो अतालता और धड़कन से पीड़ित रोगियों के लिए बेहद फायदेमंद है।
२. यह हृदय की मांसपेशियों को मजबूत करने,
३. रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने और लिपिड के निर्माण को रोकने में अत्यधिक महत्व रखता है,
४. यह एथेरोस्क्लेरोसिस, दिल के दौरे, दिल के ब्लॉक, रक्त के थक्कों आदि के जोखिम को कम करता है।
५. पुनर्नवा की जड़ का अर्क श्वेत रक्त कोशिकाओं को उत्तेजित कर सकता है और तनाव के प्रति सहनशीलता को बढ़ा सकता है
गोक्षुरा१. यह हृदय की मांसपेशियों को मजबूत करता है और रक्त वाहिकाओं में लिपिड और अन्य मलबे के गठन को रोकता है, इस प्रकार एथेरोस्क्लेरोसिस को रोकता है
२. गोक्षुरा में मौजूद बायोएक्टिव घटक गैर-एस्ट्रिफ़ाइड फैटी एसिड यानी एनईएफए के स्तर को कम करते हैं, और इसलिए दिल के दौरे, स्ट्रोक, रक्त के थक्के आदि के जोखिम को कम करते हैं।
३. यह रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अश्वगंधा –१. यह हृदय की मांसपेशियों को मजबूत करता है, रक्त वाहिकाओं में लिपिड के निर्माण को रोकता है, और इसलिए दिल के दौरे, दिल के ब्लॉक, रक्त के थक्कों आदि के जोखिम को कम करता है।
२. यह रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अर्जुना –१. यह हृदय की मांसपेशियों को मजबूत करने, कोरोनरी धमनी रक्त प्रवाह के परिसंचरण में सुधार करने और हृदय की मांसपेशियों को इस्केमिक क्षति से बचाने में शक्तिशाली है।
२. रक्तचाप को कम करने की क्षमता रखती है। यह रक्त वाहिकाओं को फैलाने और आराम करने में मदद करता है जिससे रक्तचाप को सामान्य सीमा पर बनाए रखने में मदद मिलती है।
३. इसके अलावा, यह पुरानी सूजन से लड़ सकता है और समग्र स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा दे सकता है।
गुग्गुल
आंवला
जितने साधक किसी भी औषधि का सेवन कर रहे हैं वह अपना अनुभव साझा करें
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??? इसे लगाएं अनुभव से पूर्व
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