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सफलता के मूल मंत्र निर्मल जी गहलोत के साथ || The Magic of Thinking of Rich | Day -19, 21st July 8 PM
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निर्मल गहलोत सर के साथ: संघर्ष से सफलता तक की यात्रा
कहते हैं, “सपने वो नहीं जो हम सोते वक्त देखते हैं, सपने वो हैं जो हमें सोने नहीं देते।” इसी कहावत को साकार किया है हमारे अपने डॉ निर्मल गहलोत सर ने।
गुरु पूर्णिमा के इस विशेष अवसर पर, जानिए आज रात 8:00 PM, कैसे निर्मल सर ने शिक्षा की दिशा बदल दी और अपने संघर्षमयी सफर को सफलता की मिसाल बना दिया।
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13 मिलियन होते ही एक बड़ी ख़ुशख़बरी मिलेगी!?*?**?*
Haryana Utkarsh, [2/16/2024 2:01 PM]
प्रोफेसर मेघनाद साहा
?महान भारतीय वैज्ञानिक और खगोलविद् प्रोफेसर मेघनाद साहा का जन्म 6 अक्टूबर, 1893 को हुआ था।
?भारत के सबसे प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों में से एक मेघनाद साहा अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त खगोलविद थे। उनकी इस ख्याति का आधार है -साहा समीकरण। यह समीकरण तारों में भौतिक एवं रासायनिक स्थिति की व्याख्या करता है।
?‘साहा नाभिकीय भौतिकी संस्थान’ तथा ‘इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस’ जैसी कई महत्त्वपूर्ण संस्थाओं की स्थापना का श्रेय प्रोफेसर साहा को जाता है।
?उनकी आरम्भिक शिक्षा ढाका कॉलेजिएट स्कूल में हुई और बाद में उन्होंने ढाका महाविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की।
?वर्ष 1917 में क्वांटम फिजिक्स के प्राध्यापक के तौर पर उनकी नियुक्ति कोलकाता के यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ साइंस में हो गई।
?सत्येन्द्रनाथ बोस के साथ मिलकर प्रोफेसर साहा ने आइंस्टीन और मिंकोवस्की के शोधपत्रों का अनुवाद अंग्रेजी भाषा में किया।
?वर्ष 1919 में अमेरिका के एक खगोल भौतिकी जर्नल में साहा का एक शोध पत्र छपा। यह वही शोध-पत्र था, जिसमें उन्होंने ‘आयनीकरण फॉर्मूला’ प्रतिपादित किया था।
?यह फॉर्मूला खगोलशास्त्रियों को सूर्य और अन्य तारों के आंतरिक तापमान और दबाव की जानकारी देने में सक्षम है।
?तत्त्वों के थर्मल आयनीकरण के जरिये सितारों के स्पेक्ट्रा की व्याख्या करने के अध्ययन में साहा समीकरण का प्रयोग किया जाता है।
?यह समीकरण खगोल भौतिकी में सितारों के स्पेक्ट्रा की व्याख्या के लिए बुनियादी उपकरणों में से एक है। इसके आधार पर विभिन्न तारों के स्पेक्ट्रा का अध्ययन कर तारों के तापमान का पता लगाया जा सकता है।
?प्रोफेसर साहा के समीकरण का उपयोग करते हुए तारों को बनाने वाले विभिन्न तत्त्वों के आयनीकरण की स्थिति निर्धारित की जा सकती है। प्रोफेसर साहा ने सौर किरणों के वजन और दबाव को मापने के लिए एक उपकरण का भी आविष्कार किया।
?प्रोफेसर मेघनाद साहा ने कई वैज्ञानिक संस्थानों, समितियों; जैसे नेशनल अकादमी ऑफ़ साइंस, इंडियन फिजिकल सोसायटी, इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस के साथ इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग और कलकत्ता (कोलकाता) में परमाणु भौतिकी संस्थान का निर्माण करने में मदद की।
?एक महान वैज्ञानिक होने के साथ-साथ प्रोफेसर साहा एक स्वतंत्रता सेनानी भी रहे। उन्होंने देश की आज़ादी में भी योगदान दिया। प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढ़ते हुए ही मेघनाद क्रांतिकारियों के संपर्क में आए।
?इसके बाद उनका संपर्क नेताजी सुभाष चंद्र बोस और राजेंद्र प्रसाद से भी रहा। भारत और उसकी समृद्धि में विज्ञान के महत्त्व को रेखांकित करने वाले प्रोफेसर मेघनाद साहा का आधुनिक और सक्षम भारत के निर्माण में अप्रतिम योगदान है।
?वैज्ञानिक होने के साथ-साथ प्रोफेसर साहा आम जनता में भी लोकप्रिय थे। वे वर्ष 1952 में भारत के पहले लोकसभा के चुनाव में कलकत्ता से भारी बहुमत से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीतकर आए।
?16 फरवरी, 1956 को उनकी मृत्यु हो गई।
धुंडीराज गोविंद ‘दादासाहेब' फाल्के
?दादा साहब फाल्के का जन्म 30 अप्रैल, 1870 को नासिक के निकट 'त्र्यंबकेश्वर' में हुआ था।
?इनकी शिक्षा मुम्बई में हुई तथा वहाँ उन्होंने 'हाई स्कूल' के बाद 'जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट' में कला की शिक्षा ग्रहण की।
?उन्होंने इंजीनियरिंग और मूर्तिकला का अध्ययन किया तथा वर्ष 1906 में आई मूक फिल्म ‘द लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ देखने के बाद मोशन पिक्चर्स/चलचित्र में उनकी रुचि बढ़ी।
?फिल्मों में आने से पहले फाल्के ने एक फोटोग्राफर के रूप में काम किया, एक प्रिंटिंग प्रेस के मालिक बने और यहाँ तक कि प्रसिद्ध चित्रकार राजा रवि वर्मा के साथ भी काम किया।
?वर्ष 1913 में,फाल्के ने भारत की पहली फीचर फिल्म (मूक) राजा हरिश्चंद्र की पटकथा लिखी, उसे निर्मित और निर्देशित किया। अपनी व्यावसायिक सफलता के परिणामस्वरूप फाल्के ने अगले 19 वर्षों में 95 अन्य फीचर फिल्मों के निर्माण के साथ ही 26 लघु फिल्में बनाईं।
?उन्हें ‘भारतीय सिनेमा के जनक’ (Father of Indian Cinema) के रूप में जाना जाता है।
?16 फ़रवरी, 1944 को नासिक में 'दादा साहब फाल्के' का निधन हो गया।
?भारत सरकार द्वारा भारतीय सिनेमा में दादा साहब फाल्के के योगदान को याद करने के लिए दादा साहब फाल्के पुरस्कार वर्ष 1969 में प्रारंभ किया गया तथा अभिनेत्री देविका रानी को पहले फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
?दादा साहब फाल्के ने वर्ष 1913 में भारत की पहली पूर्ण लंबाई वाली फीचर फिल्म राजा हरिश्चंद्र का निर्देशन किया था।
?सिनेमा के क्षेत्र में सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित, प्राप्तकर्ताओं को उनके 'भारतीय सिनेमा के विकास और विकास में उत्कृष्ट योगदान' के लिए पहचाना जाता है।
?इस पुरस्कार में एक स्वर्ण कमल (गोल्डन लोटस) पदक, एक शॉल और ₹10 लाख का नकद पुरस्कार शामिल है।
सुभद्रा कुमारी चौहान
?सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त, 1904 को प्रयागराज जिले (उत्तर प्रदेश) के निहालपुर गाँव में हुआ था।
?वह प्रसिद्ध कवयित्री और स्वतंत्रता सेनानी थी।
?सुभद्रा कुमारी चौहान और उनके पति, वर्ष 1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल हुए।
?उन्होंने जबलपुर में झंडा सत्याग्रह का नेतृत्व भी किया था।
?सुभद्रा कुमारी चौहान नागपुर में गिरफ्तारी देने वाली पहली महिला सत्याग्रही थीं तथा वर्ष 1923 और वर्ष 1942 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए उन्हें दो बार जेल जाना पड़ा था।
?सुभद्रा कुमारी चौहान ने हिंदी कविता में कई लोकप्रिय रचनाएँ लिखीं थीं। रानी लक्ष्मी बाई के जीवन का वर्णन करने वाली ‘झाँसी की रानी’, उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है।
?उनके द्वारा रचित वीरों का कैसा हो बसंत, राखी की चुनौती और विदा जैसी कविताएँ भी अत्यधिक देशभक्तिपूर्ण और प्रेरक थीं।
?सुभद्रा कुमारी चौहान का लेखन महिलाओं के सामने आने वाली कठिनाइयों पर केंद्रित था।
?उनका काम महिलाओं द्वारा सामना किए जाने वाले लैंगिक और जाति भेदभाव के बारे में उनकी चिंता को दर्शाता है। यह एक ऐसा मुद्दा जो वर्तमान में भी प्रासंगिक है।
?15 फरवरी, 1948 को सुभद्रा कुमारी चौहान का निधन हो गया। हिंदी साहित्य के क्षेत्र में उनके योगदान और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका को आज भी याद किया जाता है।
?सुभद्रा कुमारी चौहान की ‘झाँसी की रानी’ कविता का प्रथम छंद-
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
विश्व दलहन दिवस
?संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा वर्ष 2016 में कार्यान्वित ‘दालों के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष’ की सफलता और सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा को प्राप्त करने के लिए दालों की भूमिका को पहचानते हुए, संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने 10 फरवरी को ‘विश्व दलहन दिवस’ के रूप में नामित किया।
?यह दिवस दालों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने और बेहतर उत्पादन, बेहतर पोषण, बेहतर पर्यावरण व बेहतर जीवन के लिए अधिक कुशल, समावेशी, लचीला और टिकाऊ कृषि खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन करने में मौलिक भूमिका निभाने का एक अनूठा अवसर प्रस्तुत करता है।
?सरकारों, निजी क्षेत्रों, सदस्यों और सहयोगी संगठनों, जनता और युवाओं की मदद से, एफएओ इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस के एजेंडा को प्राप्त करने को सुविधाजनक बनाने और टिकाऊ खाद्य प्रणालियों और स्वस्थ आहार के हिस्से के रूप में दालों के उत्पादन और खपत का समर्थन करने के लिए काम करता है।
?दलहन, जिसे फली के रूप में भी जाना जाता है, भोजन के लिए उगाए जाने वाले फलीदार पौधों के खाद्य बीज हैं। सूखे बीन्स, मसूर और मटर दालों के सबसे अधिक ज्ञात और उपभोग किए जाने वाले प्रकार हैं।
?दालें कोलेस्ट्रॉल को कम कर सकती हैं और रक्त शर्करा को नियंत्रित करने में मदद करती हैं। इन गुणों के कारण स्वास्थ्य संगठनों द्वारा उन्हें मधुमेह और हृदय की स्थिति जैसे गैर-संचारी रोगों के प्रबंधन के लिए अनुशंसित किया जाता है। दालें मोटापे से लड़ने में भी मददगार साबित हुई हैं।
?किसानों के लिए, दालें एक महत्त्वपूर्ण फसल हैं क्योंकि वे उन्हें बेच और खा सकते हैं, जिससे किसानों को घरेलू खाद्य सुरक्षा बनाए रखने और आर्थिक स्थिरता बनाने में मदद मिलती है।
?दालों का नाइट्रोजन-फिक्सिंग गुण मिट्टी की उर्वरता में सुधार करता है। इससे खेत की उत्पादकता बढ़ती है। इंटरक्रॉपिंग के लिए दालों का उपयोग करके, हानिकारक कीटों और बीमारियों को दूर रखते हुए, किसान खेत की जैव विविधता और मिट्टी की जैव विविधता को भी बढ़ावा दे सकते हैं।
?इसके अलावा, मिट्टी में कृत्रिम रूप से नाइट्रोजन डालने के लिए उपयोग किए जाने वाले सिंथेटिक उर्वरकों पर निर्भरता को कम करके दालें जलवायु परिवर्तन शमन में योगदान दे सकती हैं।
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