Ancient India | प्राचीन भारत

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☀️

लेख:- चम्पा षष्ठी, शनिवार (7/12/2024)

षष्ठी प्रारम्भ:- 6/12/2024-12:07 pm
षष्ठी समाप्त:- 7/12/2024-11:05 am

चम्पा षष्ठी का त्यौहार भगवान कार्तिकेय अर्थात सुब्रह्मण्यम जी को समर्पित है। चम्पा षष्ठी महाराष्ट्र में एक महत्वपूर्ण पर्व के रूप मे मनाया जाता है। जिस वर्ष चम्पा षष्ठी रविवार अथवा मंगलवार के दिन शतभिषा नक्षत्र तथा वैधृति योग के साथ सयुंक्त होती है, तो इस संयोग को अत्यधिक शुभ माना जाता है।

दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को सुब्रह्मण्यम के नाम से भी जाना जाता है। उनका प्रिय फूल चंपा है, इसलिए इस व्रत को चंपा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है।

मान्यता है कि षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय का पूजन हर मनोकामना को पूर्ण करने में सहायक है। इस दिन भगवान कार्तिकेय के पूजन से रोग, राग, दुख-दरिद्रता का निवारण होता है। इसके अतिरिक्त यह व्रत क्रोध, लोभ, अहंकार, काम जैसी बुराइयों पर विजय दिलाकर मनुष्य को अच्छा और सुखी जीवन व्यतीत करने को प्रेरित करता है।

चम्पा षष्ठी पर्व के संबंध मे प्रचलित दो कथाएं:-
1. चंपा षष्ठी के विषय मे एक कथा के अनुसार
पौराणिक काल मे एक बार मणि और मल्ला (मल्ह) नाम के दो राक्षस भाई थे, जिन्होंने मनुष्यों के साथ-साथ देवताओं और ऋषियों के लिए बहुत सी परेशानियां खड़ी कर दी थीं। सभी देवताओं और साधुओं ने भगवान शिव से मदद मांगी।

अतः उन राक्षसो के अत्याचारों से मानव जाति को निजात दिलाने के लिए महादेव ने महाराष्ट्र के पुणे मे खंडोबा नामक स्थान पर भगवान खांडोबा का रूप धारण किया, जोकि सोने की चमक की तरह दिखते थे। भगवान का चेहरा हल्दी चूर्ण से ढका हुआ था।

भगवान खंडोबा के रूप मे उन्होने लगातार छः दिनों तक राक्षस भाइयों से भयानक युद्ध लड़ा था, छह दिनों की लंबी लड़ाई के बाद, मणि राक्षस ने भगवान शिव से क्षमा मांगी और उन्हें अपना सफेद घोड़ा भेंट किया। इसके बाद, भगवान शिव ने मनी को एक वरदान मांगने के लिए कहा। मनी ने भगवान शिव से उनके साथ रहने की इच्छा जाहिर की। उनकी इच्छा को पूरा करने के लिए, मणि की मूर्ति को सभी खंडोबा मंदिरों में रखा गया। इस प्रकार, उसी समय से चंपा षष्ठी को धार्मिक रूप से मनाया जाता है।

ऐसा माना जाता है कि इन दोनों राक्षसों का वध करने के लिए भगवान शिव ने भैरव और पार्वती ने शक्ति का रूप धारण किया था। यही कारण है कि महाराष्ट्र में रुद्रावतार भैरव को मार्तंड- मल्लहारी कहा जाता है, साथ ही खंडोबा, खंडेराया आदि नामों से भी पहचाना जाता है। मणि और मल्ह नामक दैत्यों का वध करने के कारण ही इस दिन को चंपा षष्ठी कहा जाता है।

  1. द्वितिय पौराणिक कथा के अनुसार एक बार कार्तिकेय अपने माता पिता शंकर जी और पार्वती व छोटे भाई गणेश से लेकर रूष्ट होकर कैलाश पर्वत छोड़ कर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन चलें गए, और वहीं पर निवास करने लगे। यहां पर वास करते हुए मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को भगवान कार्तिकेय ने दैत्य तारकासुर का वध किया था। इसी तिथि को उन्हें देवताओं की सेना का सेनापति बनाया गया था। अतः इसी दिन से चंपा षष्ठी का यह त्योहार मनाया जाना आरम्भ हुआ। चम्पा के फूल भी कार्तिकेय जी को बहुत पसंद है, इसी वजह से इस तिथि को चंपा षष्ठी के नाम से जाना जाता है।

चंपा षष्ठी के दिन भगवान शिव और कार्तिकेय की पूजा करना बहुत ही शुभ माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि जो भक्त इस दिन सच्चे मन से शिव और कार्तिकेय की आराधना करता है, वह समस्त पापो से मुक्त हो जाता है। भक्त के जीवन में सुख-शांति बनी रहती है, तथा जीवन के उपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है।

चंपा षष्ठी पूजन
यह त्यौहार पूर्ण शुद्धि तथा भक्ति के साथ मार्गशीर्ष अमावस्या से लेकर चंपा षष्ठी तक लगातार छह दिनों के लिए मनाते हैं।

इन छह दिनों मे भक्त प्रातः स्नानादि के उपरांत मंदिर जाते हैं।

भक्त भगवान खांडोबा की मूर्ति के सामने छह दिनों तक तेल का दीया जलाते हैं।

तत्पश्चात भगवान खांडोबा (भगवान शिव) की पूजा करते हुए सब्जियां, फल, लकड़ी, सेब के पत्तों और हल्दी चूर्ण अर्पित करते हैं।

छठे दिन चंपा षष्ठी के दिन देवता को कई तरह के नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं जैसे- थोंबरा (जो कई अनाजों के आटे से बना होता है), रोडगा (गेहूं के आधार से तैयार व्यंजन) और भंडारा (हल्दी पाउडर)।

पूजा के अंत मे आरती की जाती है।

चंपा षष्ठी पर्व मे कृत्य कर्म
1. चंपा षष्ठी पूजन के दिनो मे भक्तो को जमीन पर ही सोना चाहिए।

  1. व्रती तथा उपासक को चंपा षष्ठी के दिन तेल का बिल्कुल भी सेवन नही करना चाहिए।

  2. चंपा षष्ठी पूजन के दिनो मे, तथा चंपा षष्ठी के अगले दिन सप्तमी तिथि तक व्रती तथा उपासको को पूर्ण रूप

________

आपका दिन मंगलमय हो. 💐💐💐
*आचार्य मोरध्वज शर्मा

2 недели, 3 дня назад

Ten unknown facts about LordJagannath:

The Mysterious Sudarshan Chakra: The Sudarshan Chakra atop the Jagannath Temple is a massive metal structure that weighs tons, and its architecture is still puzzling to experts. What's even more astonishing is that the Chakra appears the same from every angle, defying the laws of architecture ¹.

The Flag That Defies the Wind: The flag on top of the Jagannath Temple flies opposite the wind direction, and no scientific explanation has been found for this phenomenon ¹ ².

The Temple Without a Shadow: The Jagannath Temple is designed in such a way that it never casts a shadow, regardless of the time of day or the sun's position ¹.

The Massive Kitchen: The Jagannath Temple kitchen is the largest kitchen in the world, with 400 cooks working around 200 hearths to feed over 10,000 people daily ³.

The Secret of the Abadha Prasadam: The Abadha prasadam is cooked in earthen pots stacked one over the other, and amazingly, the topmost pot is cooked first ³.

The Magnetic Power of the Ratna Muda: The top portion of the temple structure, known as the Ratna Muda, has a miraculous magnetic power that stabilizes and sustains the electromagnetic changes and forces acting upon it ³.

The Garuda Stambha: The 16-sided monolithic pillar in front of the temple was originally located at the Sun Temple in Konark and was dragged to the Jagannath Temple by the Marathas in the 18th century ³.

The Chariot Festival Mystery: During the Rath Yatra festival, the chariots are pulled by millions of devotees, but surprisingly, the chariots move in a straight line, defying the laws of physics ².

The Story of Lord Jagannath's Origin: Lord Jagannath was originally manifested as a giant sapphire gemstone avatar called "Nilmani" or "Neelamadhava" in the Purusottama-kshetra "Nila Kandara" ³.

The Madala Panji: The Madala Panji is an ancient manuscript that records the history of the Jagannath Temple and Lord Jagannath, but its authenticity is disputed among historians ³.
@ancientindia1

2 недели, 5 дней назад

Embracing Unity in Diversity
Tripura Rahasya encourages seekers to look beyond superficial differences, urging them to embrace the wisdom from different expressions of the Ultimate Reality. It invites readers to delve into its teachings, leading them towards peace, contentment, and profound spiritual joy.

In this sacred journey through the Tripura Rahasya, sadhakas embark on a spiritual voyage, exploring the vast expanse of Supreme Consciousness, where each word is a step closer to divine unity.
@ancientindia1

3 недели, 2 дня назад

।। हनुमान स्तुति ।।

विनय पत्रिका में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं कि हे हनुमान जी, आप गरुड़ के बल, बुद्धि और वेग के बड़े भारी गर्व को हरने वाले तथा कामदेव का नाश करने वाले ऊर्ध्वरेता ब्रह्मचारी हो! रामायण सुनने से आपका शरीर पुलकित हो जाता है, नेत्र सजल हो जाते हैं और कंठ गद्गद हो जाता है।

जयति निर्भरानंद-संदोह कपिकेसरी,
केसरी- सुवन भुवनैकमा।
दिव्य भूम्यंजना-मंजुलाकर-
मने, भक्त-संताप-चिंतापहर्ता।।

जयति धर्मार्थ-कामापवर्गद विभो,
ब्रह्मलोकादि-वैभव-विरागी।
वचन-मानस-कर्म सत्य-
धर्मवती, जानकीनाथ-चरनानुरागी।।

जयति विहगेस-बलवुद्धि-बेगाति-
मद-मथन, मनमथ-मथन, ऊर्ध्वरेता।
महानाटक-निपुन, कोटि-कविकुल-
तिलक, गान गुन-गर्व-गंधर्वजेता।।

जयति मंदोदरी-केस-कर्षन,
विद्यमान दसकंठ भट-मुकुट मानी।
भूमिजा दुःख-संजात-रोषांतकृत
जातना जंतु कृत जातुधानी।।

जयति रामायन-स्रवन-संजात-रोमांच,
लोचन सजल, सिथिल बानी।
रामपदपद्म-मकरंद-मधुकर, पाहि,
दास तुलसी सरन, सूल पानी।।

व्याख्या-
हे हनुमानजी! आपकी जय हो! आप अतिशयानन्द के समूह, वानरों में साक्षात सिंह, केशरी के पुत्र और संसार के एकमात्र स्वामी हो। आप अंजनीरूपी दिव्य पृथ्वी की खान से निकली हुई मनोहर मणि हो और भक्तों के संतापों और चिंताओं को हरने वाले हो।

हे विभो! आपकी जय हो! आप धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के देने वाले हो और आपको ब्रह्मलोक आदि के वैभव से भी विराग है। आपने मन, वचन और कर्म से सत्य को ही अपना धर्मव्रत बना रखा है। आप श्रीराम जी के चरणों में अनुराग रखने वाले हो।

आपकी जय हो! आप गरुड़ के बल, बुद्धि और वेग के बड़े भारी गर्व को हरने वाले तथा कामदेव का नाश करने वाले ऊर्ध्वरेता ब्रह्मचारी हो। आप महानाटक के निपुण रचयिता और अभिनेता हो, करोड़ों महाकवियों के कुल-तिलक हो और गान-विद्या के गुण का गर्व करने वाले गन्धवों को जीतने वाले हो।

आपकी जय हो! आप वीरों के सिरमौर महा अभिमानी रावण की उपस्थिति में उनकी स्त्री मन्दोदरी का केश पकड़कर खींचने वाले हो। आप जगज्जननी जानकी जी के दुःख से उत्पन्न क्रोध के वश हो। राक्षसियों की ऐसी यातना की थी, जैसी यमराज तमाम प्राणियों की किया करते हैं।

आपकी जय हो! रामायण सुनने से आपका शरीर पुलकित हो जाता है, नेत्र सजल हो जाते हैं और कंठ गद्गद हो जाता है। हे श्रीराम जी के चरण-कमलों के रस के भ्रमररूप हनुमान जी! त्राहि, त्राहि! हे त्रिशूलधारी रुद्ररूप हनुमान जी! तुलसी- दास आपकी शरण में है।

।। डॉ0 विजय शंकर मिश्र: ।।
@ancientindia1

3 недели, 4 дня назад

Narad Muni, revered as the foremost devotee across the three worlds, is celebrated for his unwavering devotion, profound wisdom, and universal teachings. He is known for spreading the path of Bhakti (devotion) and promoting the welfare of all living beings. His greatness and teachings are mentioned extensively in scriptures like the Vedas, Puranas, and other sacred texts.

Narad Muni holds a unique position as the divine rishi (Dev-rishi) who can traverse the three worlds—heaven, earth, and the netherworld—freely. His unparalleled devotion to Bhagwan Vishnu has made him the ideal devotee and a spiritual guide for seekers. In the Bhagavata Purana (1.6.26), Narad Muni describes his own transformation through devotion:

सत्त्वं रजस्तम इति प्रभवो हेतवः स्मृताः।
यदा न स्याद्भगवतः भक्तियोगोऽनघो नृणाम्॥

"The modes of material nature—sattva, rajas, and tamas—bind human beings. But by engaging in pure devotional service to Bhagwan, one transcends these modes and attains liberation."

Narad Muni's teachings emphasize pure devotion to Bhagwan as the ultimate goal of life. His Narada Bhakti Sutra is a celebrated text that provides deep insights into the path of Bhakti. One of its aphorisms states:

स त्वस्मिन्परमप्रेमरूपा।
"Bhakti is the supreme expression of love for Bhagwan."

Narad teaches that Bhakti is not confined to rituals but is an unbroken connection with Bhagwan through surrender, love.

Narad Muni’s devotion is selfless and transcends all material attachments. In the Vishnu Purana and Bhagavata Purana, his unwavering love for Bhagwan Vishnu is shown as he constantly sings, "Narayan, Narayan." His devotion inspires all beings, from devas to asuras, to tread the path of surrender and faith.

In the Bhagavata Purana (1.6.32), he glorifies the power of chanting Bhagwan's name:

एवं कृतमति: पूर्वं वासुदेवे भगवति।
सर्वात्मन्यधि तिष्ठन्ति तदीक्षणमनोऽभवम्॥

"With my mind fully fixed on Bhagwan Vasudeva, my heart immersed in Him, and my soul aligned with His divine form, I found eternal peace."
@ancientindia1

4 недели назад

पत्तल में भोजन करने से कितने अदभुत लाभ
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सिंगल यूज़ प्लास्टिक बैन हो ही चुके हैं, अच्छा हुआ... क्योंकि हम ज्यादा मॉडर्न होने का दिखावा कर रहे थे।

लेकिन घबराने की कोई बात नहीं है, आ जाओ फिर प्रकृति की गोद में....

क्या आप जानते हैं कि पत्तल में भोजन करने से कितने अदभुत लाभ हो सकते हैँ.!

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे देश मे 2000 से अधिक वनस्पतियों की पत्तियों से तैयार किये जाने वाले पत्तलों और उनसे होने वाले लाभों के विषय मे पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान उपलब्ध है पर मुश्किल से पाँच प्रकार की वनस्पतियों का प्रयोग हम अपनी दिनचर्या मे करते है।

आम तौर पर केले की पत्तियो मे खाना परोसा जाता है।

प्राचीन ग्रंथों मे केले की पत्तियो पर परोसे गये भोजन को स्वास्थ्य के लिये लाभदायक बताया गया है।

👉 आजकल महंगे होटलों और रिसोर्ट मे भी केले की पत्तियो का यह प्रयोग होने लगा है।

👉 पलाश के पत्तल में भोजन करने से स्वर्ण के बर्तन में भोजन करने का पुण्य व आरोग्य मिलता है।

👉 केले के पत्तल में भोजन करने से चांदी के बर्तन में भोजन करने का पुण्य व आरोग्य मिलता है।

👉 रक्त की अशुद्धता के कारण होने वाली बीमारियों के लिये पलाश से तैयार पत्तल को उपयोगी माना जाता है।

पाचन तंत्र सम्बन्धी रोगों के लिये भी इसका उपयोग होता है।

आम तौर पर लाल फूलो वाले पलाश को हम जानते हैं पर सफेद फूलों वाला पलाश भी उपलब्ध है।

इस दुर्लभ पलाश से तैयार पत्तल को बवासीर (पाइल्स) के रोगियों के लिये उपयोगी माना जाता है।

👉 जोडो के दर्द के लिये करंज की पत्तियों से तैयार पत्तल उपयोगी माना जाता है।
पुरानी पत्तियों को नयी पत्तियों की तुलना मे अधिक उपयोगी माना जाता है।

👉 लकवा (पैरालिसिस) होने पर अमलतास की पत्तियों से तैयार पत्तलो को उपयोगी माना जाता है।

इसके अन्य लाभ
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1.👉 सबसे पहले तो उसे धोना नहीं पड़ेगा, इसको हम सीधा मिटटी में दबा सकते है.!

2.👉 न पानी नष्ट होगा.!

3.👉 न ही काम वाली रखनी पड़ेगी, मासिक खर्च भी बचेगा.!

4.👉 तरह तरह के केमिकल्स उपयोग नहीं करना पड़ेगा.!

5.👉 कई तरह के केमिकल्स द्वारा शरीर को आंतरिक हानि नहीं पहुंचेगी.!

6.👉 अधिक से अधिक वृक्ष उगाये जायेंगे, जिससे अधिक आक्सीजन भी मिलेगी.!

7.👉 प्रदूषण भी घटेगा.!

8.👉 सबसे महत्वपूर्ण झूठे पत्तलों को एक जगह गाड़ने पर खाद का निर्माण किया जा सकता है, एवं मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है.!

9.👉 पत्तल बनाने वालों को भी रोजगार प्राप्त होगा.!

10.👉 सबसे मुख्य लाभ, आप नदियों को दूषित होने से बहुत बड़े स्तर पर बचा सकते हैं, जैसे कि आप जानते ही हैं कि जो पानी आप बर्तन धोने में उपयोग कर रहे हो, वो केमिकल वाला पानी, पहले नाले में जायेगा, फिर आगे जाकर नदियों में ही छोड़ दिया जायेगाl जो जल प्रदूषण में आपको सहयोगी बनाता है.!
इसलिए आज के बाद जब भी मौका मिले तो सिर्फ पत्तल में ही खायें..।

डॉ0 विजय शंकर मिश्र:।
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@ancientindia1

1 месяц назад

कालभैरव जयंती 2024🙏
Kalbhairav Jayanti 2024

मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालभैरव अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने कालभैरव का अवतार लिया था। इसलिए इस पर्व को कालभैरव जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 23 नवंबर, शनिवार को है।

काल भैरव अष्टक 🙏
Kalbhairav Ashtakam

देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् ।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ १॥

भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ २॥

शूलटंकपाशदण्डपाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ३॥

भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ ४॥

धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशनं कर्मपाशमोचकं सुशर्मधायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभितांगमण्डलं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ५॥

रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम् ।
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ६॥

अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं दृष्टिपात्तनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ७॥

भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ८॥

॥ फल श्रुति॥

कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम् ॥

॥इति कालभैरवाष्टकम् संपूर्णम् ॥

#Aadyashakti
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@ancientindia1

1 месяц назад

देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजं
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥

*🛕बाबा श्री काल भैरवाष्टमी जी की हार्दिक शुभकामनाएं*🔱🚩📿🕉️

*🕉️नमः पार्वती पतये हर हर महादेव
जय श्री काशीविश्वनाथो विजयतेतराम्*

1 месяц назад
1 месяц назад

17/11/2024: Pillaiyar

Om Trimk Ganapathiye Namaha:

Details about Trimukha Ganapati are mentioned in authoritative texts, specifically as one of the many forms of Vinayaka (Ganesha). Trimukha Ganapati is a unique form of Vinayaka with three faces.

In authoritative texts, Trimukha Ganapati is considered the embodiment of inner wisdom, strength, and balance. Since the three faces look in different directions, he is believed to rule over all directions.

The worship of Trimukha Ganapati is considered important in various rituals, as it is believed that he grants wisdom, wealth, and peace to his devotees. This form plays a significant role in yoga, meditation, and spiritual practices.

Pillaiyar story

Appam mothagam aval sesame gravy thirty coconut muthagam sugar with red water milk with neyar nutches Bonagang 565
Material
Bread, fraud, aval, buffalo, triple, coconut, sugar, sugar, honey, sugar, red water, milk, aromatic ghee, curd, nuts, rice,

"Accepting is pleasure" : God's voice (Part four)

Four Yajanam (he) remaining to go to Athyayanam and Athyapanam in his own profession, Yajanam (doing yagam to the poor), Donation (giving), Prathikraham (taking donation). Expenditure in yajana and donation, but no earnings. Dakshinai will be available in doing Yagam to others; Dignity can be obtained in Prathikraham too. But, there's an important thing to notice here too. Usually keeping "accepting is pleasure" and also scared that the sin of the giver while receiving donation will also come to the receiver! He has scared me with a big list of efforts to get another donation from Inan. No one else scared, Brahmin himself scared and wrote in the scriptures. The great Chraudis want to be the master of Yagna and get the benefit of Yagna, but they don't want to do it to another and get less Takshi than this benefit. Yajanam' is the duty of Brahmins, they will spend the Dakshinai in it for some good deed.
So, even if we say six businesses, there is no place for Adhyayanam, Yajanam, Donation. Earned restrictions on yajana and prathikraham. The only blessed Teaching can give a lot of reasonable income, but they have made it differently to protect its divineness and not to carry it with income perspective
When the teacher accepts it without asking, even here the teachers are accepting Dakshinai instead of thinking that the disciple has 'learned', they are accepting Dakshinai only when they are satisfied with themselves that the disciple has given Dakshinai. Coming in "Pruhadaranyaka" (Upanisha) (Fourth Chapter, First Brahmin): Yajjavalkyar performed as every advice, Janagar starts performing Sambavan to him every standard. But Yajjavalkyaro says, "It is my father's opinion not to buy Dakshinai without teaching fully" and refuses to accept Dakshinai again and again
@ancientindia1

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