श्रीवैदिक स्मार्त्त 🌼

Description
श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेयो धर्मशास्त्रस्तु वै स्मृतिः ।
ते सव्वमीमांस्येताभ्यां धर्मो हि निर्वभौ ॥ ( मनु २ / १०)
Advertising
We recommend to visit

Welcome to @UtkarshClasses Telegram Channel.
✍️ Fastest growing Online Education App ?
?Explore Other Channels: ?
http://link.utkarsh.com/UtkarshClassesTelegram
? Download The App
http://bit.ly/UtkarshApp
? YouTube?
http://bit.ly/UtkarshClasses

Last updated 2 months, 3 weeks ago

https://telegram.me/SKResult
☝️
SK Result
इस लिंक से अपने दोस्तों को भी आप जोड़ सकते हो सभी के पास शेयर कर दो इस लिंक को ताकि उनको भी सही जानकारी मिल सके सही समय पर

Last updated 5 days, 23 hours ago

प्यारे बच्चो, अब तैयारी करे सभी गवर्नमेंट Exams जैसे SSC CGL,CPO,CHSL,MTS,GD,Delhi पुलिस,यूपी पुलिस,RRB NTPC,Group-D,Teaching Exams- KVS,CTET,DSSSB & बैंकिंग Exams की Careerwill App के साथ बहुत ही कम फ़ीस और इंडिया के सबसे बेहतरीन टीचर्स की टीम के साथ |

Last updated 2 months ago

1 week, 2 days ago
1 week, 3 days ago
**जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञः स्वराट्

जन्माद्यस्य यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञः स्वराट्
तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरयः।
तेजोवारिमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा
धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं सत्यं परं धीमहि॥

(श्रीमद्भागवतमहापुराण ०१।०१।०१)
यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै-
र्वेदैः साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगाः।
ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो
यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणा देवाय तस्मै नमः॥

(श्रीमद्भागवतमहापुराण १२।१३।०१)

1 week, 4 days ago

बौद्धप्रस्थानमें "
न सन् नासन् न सदसन्न चाप्यनुभयात्मकम्" -

यह चार कोटियोंमें निषेध मुखसे वस्तुका प्रतिपादन है, 'न भावो नाप्यभावः", "न नित्यो नाप्यनित्यः", "नोच्छेदो नापि शाश्वतः।" यह दो कोटियोंमें निषेध मुखसे वस्तुका प्रतिपादन है, "अद्वय" यह एक कोटिमें निषेध मुखसे वस्तुका प्रतिपादन है। परन्तु "नित्यो ध्रुवः शिवः " की उक्तिसे विधिमुखसे वस्तुका प्रतिपादन है। "जो अनित्य नहीं, वह नित्य है। जो अध्रुव नहीं, वह ध्रुव है। जो अशिव नहीं, वह शिव है।" की दृष्टिसे यह एक कोटिमें विधिमुखसे आत्मवस्तुका प्रतिपादन है। नित्यको केवल अनित्यका, ध्रुवको केवल अध्रुवका तथा शिवको केवल अशिवका प्रतिषेध मानें तो प्रतिपाद्यशून्य अभावात्मक असत् ही सिद्ध होगा। ऐसी स्थितिमें उसे चतुष्कोटि - विनिर्मुक्त कहना वाग्विलासमात्र सिद्ध होगा। बन्ध्या - पुत्र, शश - शृङ्ग, आकाश - कुसुममें बन्ध्या और पुत्र, शश तथा शृङ्ग, आकाश और कुसुम - दोनों शब्द भाववाचक हैं। तथापि बन्ध्यापुत्रादि अलीक पदार्थ हैं। विवाहिता बन्ध्यामें देहगत प्रतिबन्धकताके कारण सन्तानहीनता होती है। नरमें चतुष्पाद, पुच्छ, पक्ष तथा शृङ्ग चारोंसे विहीनता पुरुषार्थ चतुष्टयसाधकता है। वानरमें चतुष्पाद - पक्ष - शृङ्गः - विहीनता धर्म, अर्थ, काम साधकता है। कपोतादिमें द्विपाद, पुच्छ और पक्षसम्पन्नता अर्थ, कामसाधकता तथा नभचरता है। गवादिमें चतुष्पाद, पुच्छ तथा शृङ्गः - संम्पन्नता अर्थ, कामसाधकता तथा भूचरता है। आर्द्रपृथ्वीमें पुष्पकी उपादानता तथा जलकी निमित्तता सिद्ध है। पङ्किल जलमें तापापनोदक और सुगन्धित पुष्पकी प्रचुर निमित्तता सिद्ध है। तद्वत् पुष्पाभिव्यक्तिमें भूमि तथा बीजनिष्ठ उष्णता, प्राणदा तथा अवकाशप्रदता भी सन्निहित है, तथापि पुष्पकी भूमिकुसुम, जलकुसुम (जलज) ही संज्ञा है, न कि तेजः कुसुम, वायुकुसुम या आकाशकुसुम। इसका कारण पृथ्वी तथा जलकी प्रधानता या मुख्यता है।

वैदिकप्रस्थानमें "
नान्तः प्रज्ञं न बहिष्प्रज्ञं नोभयतः प्रज्ञं न प्रज्ञानधनं न प्रज्ञं नाप्रज्ञम्। अदृष्टमवहार्यमग्राह्यमलक्षणमचिन्त्य- मव्यपदेश्यमेकात्मप्रत्ययसारं प्रपञ्चोपशमं शान्तं शिवमद्वैतं चतुर्थं मन्यन्ते स आत्मा स विज्ञेयः " (माण्डूक्योपनिषत् ७) में "नान्तः प्रज्ञ "
आदि निषेध मुखसे आत्माका प्रतिपादन है। "शान्तं शिवम्" • यह विधिमुखसे आत्माका प्रतिपादन है।

"न सती, न असती, न सदसती" (सर्वसारोपनिषत् ४) के अनुसार माया न सती है, न असती, न उभयरूपा सदसती ही। परन्तु "ॐ तदाहुः किं तदासीत्तस्मै स होवाच न सन्नासन्न सदसदिति तस्मात्तमः सञ्जायते।" (सुबालोपनिषत् १), "...तमः परे देव एकीभवति परस्तान्न सन्नासन्नासदसदित्ये- तन्निर्वाणानुशासनमिति वेदानुशासनम् "
से तमस् का लयस्थान और उद्धवस्थान परदेवस्वरूप ब्रह्म भी सत्, असत् तथा सदसत् से विलक्षण सिद्ध होता है। "
सविलासमूलाविद्या सर्वकार्योपाधिसमन्विता सदसद्विलक्षणानिर्वाच्या " (त्रिपाद्विभूतिमहानारायणोपनिषत् ३)
के अनुसार मूलाविद्यारूपा माया सत्, असत् से विलक्षणा अनिर्वाच्या है। वेदान्ती मायाको सदसद्विलक्षणा अनिर्वाच्या मानते हैं।

नासदूपा न सदूपा माया नैवोभयात्मिका।
अनिर्वाच्या ततो ज्ञेया मिथ्याभूता सनातनी।। (बृहन्नारदीय)

"माया न असत् है, न सत् ही, न उभयात्मिका ही, वह मिथ्या और सनातनी है। अतः अनिर्वाच्या ही समझने योग्य है।।"

यह लेख बौद्ध सिद्धांत और वेदांत से लिया गया है 🌼

#श्रीवैदिक स्मार्त्त

2 weeks ago

कुछ विलक्षण मस्तिष्क के बुद्धिजीवी मूर्खों को यह नहीं पता की सारे स्मृतियां के प्रमाणों से प्रबल मनुस्मृति के वचन होते हैं।
मनुस्मृति के वचनों को वेदों ने स्पष्ट स्वीकार करते हुए कहां है यजुर्वेद में, तैत्तरीय संहिता यद्वै किञ्ज्ञ मनुरवदत् तद् भेषजम् (कृष्ण यजुर्वेद/तैत्तरीय संहिता/2/2/10/2) मनु ने जो कुछ कहा है वह औषधि 23/16/17 है।

मनुस्मृति भी वेदों द्वारा ही स्वीकृत है। वेद कहते हैं; मनु जो कहे वही औषधि है-
यद्वै किञ्ज्ञ मनुरवदत् तद् भेषजम्(कृष्ण यजुर्वेद/तैत्तरीय संहिता/2/2/10/2)
सामवेद में भी यही कहा गया है, पचविंश ब्राह्मण: मनुः यत् किज्ञावदत् तत् भैषज्यायै (तंड्यब्रह्मण 23/16/17)

वेदार्थोपनिबद्धत्वात .... दुश्यते || (बृह. स्मृति संस्कार्खंड 13-१४)

अर्थात – वेदार्थों के अनुसार रचित होने के कारण सब स्मृतियों में मनुस्मृति ही सबसे प्रधान एवं प्रशंसनीय है ! जो मनु स्मृति के अर्थ के विपरीत है, वह प्रशंसा के योग्य अथवा ग्राहय नहीं है ! तर्कशास्त्र, व्याकरण आदि शास्त्रों की शोभा तभी तक है जब तक धर्म, अर्थ, मोक्ष का उपदेश देने वाला मनु नहीं होता अर्थात मनु के उपदेशों के समक्ष सभी शास्त्र निस्तेज, प्रभावहीन प्रतीत होते है

श्रुतिप्रमाणको धर्मः हारीत, कुल्लूक, मनु० २, १ की टीका। श्रुतिस्मृतिविहितो धर्मः - श्रुति और स्मृति द्वारा विहित आचरण धर्म है। वसिष्ठधर्मसूत्र १. ४. ६ । इन कतिपय परिभाषाओं से यही ज्ञात होता है कि धर्म का मूल है वेद और स्मृति, और इनको प्रमाण मानकर विहित नियम या आचार ही धर्म हैं।

वेद धर्म का मूल है- "वेदो धर्ममूलम् । तद्विदा" च स्मृतिशीले। आपस्तम्वधर्मसूत्र- "धर्मसमयः प्रमाणं वेदाश्च" १. १. १. २। धर्म को जानने वाले वेद का मर्म समझने वाले व्यक्तियों का मत ही वेद का प्रमाण है।

अस्मिन् धर्मोsखिलेनोक्तः -मनु० ०१।१०७ मनु स्मृति में सभी धर्म कह दिये गये हैं और जो कुटुम्ब,कुल,ग्राम, राष्ट्र , साधारण, वर्ण, आश्रम, अन्तराल, निमित्तादि धर्म कहे , क्या केवल उतना ही धर्म होगा ? तो मनु ने ही कहा कि मनु के अविरुद्ध स्मृत्ति भी स्मार्त्त आचार को प्रमाणित करेगी । लेकिन स्मृतियों में तो इतिहास के ग्रन्थ भी आयेंगे , पुराण भी आयेंगे , तन्त्र भी आने लगेंगे , क्या सभी आचार प्रमाण होंगे ?

क्योंकि पुराण, मनुस्मृति , वेदांग और वेद -- ये चार ( पुराणं मानवो धर्मः साङ्गो वेदश्चिकित्सितम्) मनु अथवा श्रीकुमारिल भट्ट के तन्त्रवार्तिक के वचनाधार पर ईश्वराज्ञा से ही सिद्ध कोटि के धर्म कहे जाने से हेतु से हन्तव्य (तर्क से खण्डनीय) नहीं होते ,

मनु स्मृति के विरुद्ध कोई भी स्मृति- वचन प्रशंसनीय नही होता , वह चाहे किसी भी स्मृति ने क्यों न कहा हो । तन्त्रवचन से प्रबल प्रमाण पुराणवचन होता है, पुराणवचन से प्रबल स्मृतिवचन और स्मृतिवचन से प्रबल श्रुतिवचन - यह व्यवस्था शास्त्र में प्रतिपादित है । और क्योंकि मनु ने देश, जाति, कुल धर्मों के साथ साथ पाखण्ड धर्म भी बता ही दिये हैं -

देशधर्माञ्जातिधर्मान् कुलधर्मांश्च शाश्वतान् । पाषण्डगणधर्मांश्च शास्त्रेsस्मिन्नुक्तवान्मनुः ।। मनु० ०१।११८,

उसी से सभी आचारों की समीक्षा की जाती है । इसलिये सब प्रकार के आचारों के उपर सर्वश्रेष्ठता तो श्रौत -स्मार्त्ताचार की ही रहने वाली है , तभी तो मनु ने यही कहा कि -

आचारः परमो धर्मः श्रुत्युक्तः स्मार्त्त एव च - मनु० ०१।१०८

अर्थात् वेद में बताया हुआ वेदाचार और स्मृति में बताया हुआ स्मार्त्ताचार यही 'परम धर्म' है ।

परम धर्म का यही मतलब है कि इस वेदाचार और स्मार्त्ताचार के सम्मुख कोई भी धर्म प्रधान नहीं है ,
इसलिये मनु के सिद्धान्त के विरुद्ध कोई भी स्मृति सम्मान को प्राप्त नहीं होती । मनु के शासन में ही हमारे आर्यावर्त्तदेश भारत में धर्म प्रतिष्ठित है श्रुतिस्मृतिविहितो धर्मः ।

#श्रीवैदिकस्मार्त्त

2 weeks, 1 day ago

भगवान्भास्कर के पूजन हेतु विशेष काल आज (कार्तिकशुक्लसप्तमी, शुक्रवार)

दीक्षित/अदीक्षित सभी इस निर्देशानुसार आज उपर्युक्त नाममन्त्र का अष्टोत्तरसहस्र (१००८) बार जप करें।

आज उषा काल में उदित होते भगवान् सूर्यनारायण को अर्घ्यादि प्रदानकर सविधि उनकी आराधना करें।

सर्वसामान्य षोडशोपचारादि सहित:- सूर्यपूजा विधानम्

2 weeks, 3 days ago
3 weeks, 1 day ago
3 weeks, 2 days ago

भारत के लगभग समस्त प्रान्तोंमें दीपावली कल गुरुवार, ३१/१०/२०२४ को ही मनाई जाएगी।

आर्षपक्ष में शास्त्रीय सूर्यसिद्धान्तीय पञ्चाङ्गों द्वारा यही निर्णीत है। सूर्यसिद्धान्तीय गणितपद्धति का अनुगमन करने वाले काशी के हृषीकेश पञ्चाङ्ग, विश्व पञ्चाङ्ग; बिहार के विद्यापति पञ्चाङ्ग और विश्वविद्यालय पञ्चाङ्ग; राजस्थान के श्रीसर्वेश्वर जयादित्य पञ्चाङ्ग; महाराष्ट्र के देशपाण्डे पञ्चाङ्ग; दक्षिण भारत के शृङ्गेरीपीठसे प्रकाशित पञ्चाङ्ग, मध्वमठ से प्रकाशित पञ्चाङ्ग; श्रीकाशीविद्वत्परिषद्; अखिलभारतीयविद्वत्परिषद्; केन्द्रीयसंस्कृतविश्वविद्यालय इत्यादि सभी ने एक स्वरमें कल- गुरुवार, ३१/१०/२०२४ को ही दीपावली एवं प्रदोषकालमें लक्ष्मीपूजन का निर्णय किया है।

स्मरण रहे, शास्त्रीय सूर्यसिद्धान्तीय पञ्चाङ्गों के अतिरिक्त, दो बहुश्रुत दृग्गणितीय पद्धति का अनुगमन करने वाले पञ्चाङ्ग १) जगन्नाथ पञ्चाङ्ग एवं २) सम्पूर्णानन्दसंस्कृतविश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित उत्तरप्रदेशशासनद्वारा संरक्षित श्रीबापूदेशास्त्रीद्वारा प्रवर्तित पञ्चाङ्ग में भी दीपावली कल गुरुवार ३१/१०/२०२४ को ही लिखी है।

आर्ष सूर्यसिद्धान्तीय पक्ष श्रीवेदव्यास, श्रीविद्यारण्यस्वामि आदि पूर्वाचार्यों द्वारा मान्य है। धर्मसम्राट् स्वामी श्रीकरपात्रीजी महाराज, पुरीपीठ के १४४वें पीठाधीश्वर पूर्वाचार्य स्वामी श्रीनिरञ्जनदेवतीर्थजी महाराज, वर्तमान शृङ्गेरीपीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी श्रीभारतीतीर्थ जी महाराज एवं शृङ्गेरीपीठकी विद्वत् मण्डली एवं वर्तमान पुरीपीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी श्रीनिश्चलानन्दसरस्वतीजी महाराज एवं उनकी सच्छिष्यमण्डली द्वारा सूर्यसिद्धान्तीय पक्ष ही मान्य है।

सुतरां- शास्त्रीयपक्ष के अनुसार दीपावली कल (गुरुवार तदनुसार ३१/१०/२०२४ को) ही है।

3 weeks, 2 days ago

किसे जानें और किसे नहीं, जिसे जानें उसे कैसे जानें इत्यादि पर विमर्श करनेसे पूर्व वस्तुतः ज्ञेय तत्व क्या है यह जानना आवश्यक है।

"ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते।
ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम्॥"
(श्रीमद्भगवद्गीता १३।१८)
"वेदैश्च सर्वैः-अहम्-एव वेद्यो"
(श्रीमद्भगवद्गीता १५।१५)
"मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव॥"

(श्रीमद्भगवद्गीता ७।७)
"वासुदेवः सर्वमिति"
(श्रीमद्भगवद्गीता ७।१९)

ज्ञानस्वरूप ज्ञानगम्य और ज्ञेय एकमात्र देशकाल एवं वस्तुकृत परिच्छेदविनिर्मुक्त सच्चिदानन्दस्वरूप ब्रह्मात्मतत्व और उसका एकत्व ही है। श्रुतिस्मृतिपुराणेतिहासादि सकल सच्छास्त्रोंमें उस एक के विज्ञानसे ही सर्वविज्ञान और उस एक के ही विज्ञानसे मुक्ति भी कही गई है। भगवान् श्रीकृष्ण का यह स्पष्ट उद्घोष है- "वेदैश्च सर्वैः-अहम्-एव वेद्यो" (श्रीमद्भगवद्गीता १५।१५) अर्थात्, "समस्त वेदोंद्वारा मैं (परमात्मा) ही जाननेयोग्य हूँ।" "एव" का प्रयोग करके अन्य किसी तत्वके ज्ञेयत्वका स्पष्ट निषेध कर दिया गया है।

भगवान् श्रीकृष्ण ने गीतामें कहा है-
"ज्ञेयं यत्तत्प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वाऽमृतमश्नुते।
अनादिमत्परं ब्रह्म न सत्तन्नासदुच्यते॥"

(श्रीमद्भगवद्गीता १३।१३)
अर्थात्, उस ज्ञेय परामात्मतत्व को यथावद्रूपसे कहूँगा जिसे जानकर अमृतत्व प्राप्त हो जाता है।

आगे "ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं" (गीता १३।१८) कहकर संविद्रूप सदानन्द ब्रह्मात्म तत्व को ही ज्ञेय और ज्ञानगम्य कहा है। पुनश्च, "वेदैश्च सर्वैः-अहम्-एव वेद्यो" (श्रीमद्भगवद्गीता १५।१५) कहकर वेदों का वेद्य तत्व मैं (परब्रह्म परमात्मा) ही हूँ इसका निरूपण किया है।

अतः यह स्पष्ट है कि ब्रह्मात्मतत्व ही वह वेदोंका अपूर्वप्रतिपाद्य एकमात्र ज्ञेय तत्व है।

4 weeks, 1 day ago
We recommend to visit

Welcome to @UtkarshClasses Telegram Channel.
✍️ Fastest growing Online Education App ?
?Explore Other Channels: ?
http://link.utkarsh.com/UtkarshClassesTelegram
? Download The App
http://bit.ly/UtkarshApp
? YouTube?
http://bit.ly/UtkarshClasses

Last updated 2 months, 3 weeks ago

https://telegram.me/SKResult
☝️
SK Result
इस लिंक से अपने दोस्तों को भी आप जोड़ सकते हो सभी के पास शेयर कर दो इस लिंक को ताकि उनको भी सही जानकारी मिल सके सही समय पर

Last updated 5 days, 23 hours ago

प्यारे बच्चो, अब तैयारी करे सभी गवर्नमेंट Exams जैसे SSC CGL,CPO,CHSL,MTS,GD,Delhi पुलिस,यूपी पुलिस,RRB NTPC,Group-D,Teaching Exams- KVS,CTET,DSSSB & बैंकिंग Exams की Careerwill App के साथ बहुत ही कम फ़ीस और इंडिया के सबसे बेहतरीन टीचर्स की टीम के साथ |

Last updated 2 months ago